सोमवार, 25 जून 2012

श्री कृष्ण की तपोभूमि रही है टिहरी गढ़वाल

देवभूमि उत्तराखण्ड में मंदिरों की कोई कमी नहीं है। उत्तराखण्ड में ही विश्व प्रसिद्ध श्री बदरी नाथ धाम है। जो भगवान विष्णु को समर्पित है। इसके अलावा गंगोत्री, यमनोत्री, केदारनाथ और सेम-मुखेम है। गंगोत्री से गंगा और यमनोत्री से यमुना निकलती है। केदारनाथ शिव को समर्पित है। सेम-मुखेम भगवान श्रीकृष्ण के तपोभूमि का गवाह है। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने टिहरी गढ़वाल के सेम-मुखेम नामक जगह पर कठोर तपस्या की थी। आज भी लाखों की संख्या में लोग सेम-मुखेम पहुंचते हैं।

ऐसी मान्यता है कि द्वारिका से भगवान श्रीकृष्ण तपस्या करने हेतु हिमालय की ओर चले। वे सबसे पहले उत्तराखण्ड के पौड़ी गढ़वाल पहंुचे जहां उन्होंने कुछ दिन बिताये। फिर उन्होंने स्थानीय लोगों से बताने को कहा कि कोई ऐसी जगह बताओ जो मेरे तपस्या करने योग्य हो। जहां मैं शांति से तपस्या कर सकंु। पौड़ी गढ़वाल के लोगों ने भगवान श्रीकृष्ण को बताया कि हिमालय की गोद में सेम-मुखेम जो जगह है वह आपके लिए सर्वाधिक उपर्युक्त है। भगवान श्रीकृष्ण पौड़ी गढ़वाल से सेम-मुखेम की ओर प्रस्थान कर गये। सेम-मुखेम पहंुचने पर श्रीकृष्ण ने स्थानीय राजा गंगू रमोला से दो गज जमीन की मांग की। श्रीकृष्ण ने गंगू रमोला से कहा कि उन्हें केवल दो गज जमीन चाहिए जहां वे बैठकर आराम से तपस्या कर सकें। श्रीकृष्ण साधारण वेश में थे इसलिए गंगू रमोला भगवान को पहचान नहीं सका। और जमीन देने से इन्कार कर दिया।

गंगू रमोला के पास कई भैंसे थी। जिनमें से अधिकांश दूध नहीं देती थी। इस कारण गंगू रमोला परेशान रहता था। भगवान श्रीकृष्ण के बार-बार आग्रह किये जाने पर टालने के उद्देश्य से गंगू रमोला ने कहा- मैं तुम्हें जमीन जरूर दुंगा लेकिन मेरी एक शर्त है। शर्त है कि मेरी जितनी भैंसे दूध नहीं देती हैं अगर वे दूध देना प्रारम्भ कर दें तो मैं तुम्हे जमीन उपलब्ध करवा दंूगा। श्रीकृष्ण ने कहा कि यह तो बहुत ही आसान है जाओ गौशाला में पता करो कि तुम्हारी कौन सी भैंस अब दूध नहीं देती हैं। गंगू रमोला बारी-बारी से सभी भैंस के पास जाकर जांच किया। गंगू रमोला ने पाया की अब उसकी सभी भैंसे दूध देने लग गई। गंगू रमोला ने प्रसन्न होकर भगवान श्रीकृष्ण से कहा आप जहां चाहें तपस्या कर लें। आज से आप मेरे परम मित्र हैं और मेरी इस रियासत पर आपका भी अधिकार है।

जिस जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने तपस्या किया था आज वहां पर भव्य मंदिर है। मंदिर के भीतर एक बहुत बड़ी शीला है जिसे लोग भगवान श्रीकृष्ण का प्रतीक मानते हैं। कुछ ही दूरी पर पत्थरों पर गाय, भैंस और भगवान श्रीकृष्ण के घोड़े के पैर के निशान भी हैं। मंदिर के पास ही एक बहुत बड़ा पत्थर है जो केवल एक अंगूली लगाने से हिलता है। लेकिन अगर आप बलपूर्बक उस पत्थर को हिलाने का प्रयास करेंगे वह पत्थर नहीं हिलेगा। उपरोक्त लिखी बातें आज भी प्रत्यक्ष हैं। जिसे कोई भी जाकर देख सकता है।

Way to Sem-Mukhem

1.Haridwar-Rishikesh-New Tehri-Lambgaon-SemMukhem

-- राजाराम राकेश, टिहरी गढ़वाल

रविवार, 17 जून 2012

पुत्र द्वारा एक पोस्ट पिता के लिए...

(आज फादर्स-डे है. इसी बहाने मैंने अपने पिता जी से जुडी बातों को सहेजने का प्रयास किया है. पिता जी उत्तर प्रदेश सरकार में वर्ष 2003 में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति पश्चात सम्प्रति रचनात्मक लेखन व अध्ययन, बौद्धिक विमर्श एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक भागीदारी में प्रवृत्त हैं. मुझे इस मुकाम तक पहुँचाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है.)

बचपन में पिता जी के साथ न रहने की कसक-

किसी भी व्यक्ति के जीवन में पिता का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है. माँ की ममता और पिता की नसीहत..दोनों ही जीवन को एक दिशा देते हैं. मेरा अधिकतर बचपन ननिहाल में गुजरा, बमुश्किल चार साल मैंने अपने पिताजी के साथ लगातार गुजारे होंगें. मेरे जन्म के बाद पिता जी का स्थानांतरण प्रतापगढ़ के लिए हो गया, तो हम मम्मी के साथ ननिहाल में रहे. पुन: पिता जी का स्थानान्तरण आजमगढ़ हुआ तो हम ननिहाल से पिता जी के पास लौट कर आए. कक्षा 2 से कक्षा 5 तक हम पिता जी के साथ रहे, फिर नवोदय विद्यालय में चयन हो गया तो वहां चले गए. कक्षा 6 से 12 तक जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर, आजमगढ़ के हास्टल में रहे और फिर इलाहाबाद. इलाहाबाद से ही सिविल-सर्विसेज में सफलता प्राप्त हुई, फिर तो वो दिन ही नहीं आए कि कभी पिता जी के साथ कई दिन गुजारने का अवसर मिला हो...हम घर जाते या पिता जी हमारे पास आते..दसेक दिन रहते, फिर अपनी-अपनी जिंदगी में व्यस्त और मस्त. फोन पर लगभग हमेशा संवाद बना रहता है. पर मुझे आज भी कसक होती है कि मैं उन भाग्यशाली लोगों में नहीं रहा , जिन्होंने अपनी पिता जी के साथ लम्बा समय गुजारा हो.

लेखनी पर पिता जी का प्रभाव-

मैंने पिता जी को बचपन से ही किताबों और पत्र-पत्रिकाओं में तल्लीन देखा. वो पत्र-पत्रिकाओं से कुछ कटिंग करते और फिर उनमें से तथ्य और विचार लेकर कुछ लिखते. पर यह लिखना सदैव उनकी डायरी तक ही सीमित रहा. पिता जो को लिखते देखकर मुझे यह लगता था कि मैं भी उनकी तरह कुछ न कुछ लिखूंगा. छुट्टियों में घर आने पर पिताजी की नजरें चुराकर उनके बुकशेल्फ से किताबें और पत्र-पत्रिकायें निकालकर मैं मनोयोग से पढता था. पिताजी के आदर्शमय जीवन, ईमानदारी व उदात्त व्यक्तित्व का मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा और मेरे चरित्र निर्माण में पिताजी की अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका रही। अध्ययन और लेखन के क्षेत्र में भी मुझ पर पिताजी का प्रभाव पड़ा। पिताजी के अध्ययन प्रेमी स्वभाव एवम् लेखन के प्रति झुकाव को सरकारी सेवा की आचरण संहिताओं व समुचित वातावरण के अभाव में मैंने डायरी में ही कैद होते देखा है। वर्ष 1990 में पिताजी ने आर0 एस0 ‘अनजाने‘ नाम से एक पुस्तक ‘‘सामाजिक व्यवस्था और आरक्षण‘‘ लिखी, पर सरकारी सेवा की आचरण संहिताओं के भय के चलते खुलकर इसका प्रसार नहीं हो सका। फिलहाल पिताजी के सेवानिवृत्त होने के पश्चात उनके लेख देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में स्थान पा रहे हैं, पर किशोरावस्था में जब भी मैं पिताजी को नियमित रूप से अखबार की कतरनें काटते देखते और फिर कुछ समय बाद उन्हें पढ़कर जब वे फेंक देते, तो आप काफी उद्वेलित होता थे। ‘अखबार की कतरनें’ नामक अपनी कविता में इस भाव को मैंने बखूबी अभिव्यक्त किया है- ”मैं चोरी-चोरी पापा की फाइलों से/उन कतरनों को लेकर पढ़ता/पर पापा का एक समय बाद/उन कतरनों को फाड़कर फेंक देना/मुझमें कहीं भर देता था एक गुस्सा/ऐसा लगता मानो मेरा कोई खिलौना/तोड़कर फेंक दिया गया हो/उन चिंदियों को जोड़कर मैं/उनके मजमून को समझने की कोशिश करता/शायद कहीं कुछ मुझे उद्वेलित करता था।” जो भी हो पिताजी के चलते ही मेरे मन में यह भाव पैदा हुआ कि भविष्य में मैं रचनात्मक लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हूँगा और अपने विचारों व भावनाओं को डायरी में कैद करने की बजाय किताब के रूप में प्रकाशित कर रचना संसार में अपनी सशक्त उपस्थित दर्ज कराऊंगा.

पिता जी की सीख बनी सिविल- सर्विसेज में सफलता का आधार
वर्ष 1994 में मैं जवाहर नवोदय विद्यालय जीयनपुर, आजमगढ़ से प्रथम श्रेणी में 12वीं की परीक्षा उतीर्ण हुआ एवम् अन्य मित्रों की भांति आगे की पढ़ाई हेतु इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला लेने का निर्णय लिया। जैसा कि 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद कैरियर बनाने की जद्दोजहद आरम्भ होती है, मैंने भी अपने मित्रों के साथ सी0बी0एस0ई0 मेडिकल की परीक्षा दी और पिताजी से डाॅक्टर बनने की इच्छा जाहिर की। पिताजी स्वयं स्वास्थ्य विभाग में थे, पर उन्होंने मुझे सिविल सर्विसेज परीक्षा उत्तीर्ण कर आई0 ए0 एस0 इत्यादि हेतु प्रयत्न करने को कहा। इस पर मैंने कहा कि- ‘‘पिताजी! यह तो बहुत कठिन परीक्षा होती है और मुझे नहीं लगता कि मैं इसमें सफल हो पाऊँगा।’’ पिताजी ने धीर गम्भीर स्वर में कहा-‘‘बेटा! इस दुनिया में जो कुछ भी करता है, मनुष्य ही करता है। कोई आसमान से नहीं पैदा होता।’’ पिताजी के इस सूत्र वाक्य को गांठकर मैंने वर्ष 1994 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में कला संकाय में प्रवेश ले लिया और दर्शनशास्त्र, राजनीति शास्त्र व प्राचीन इतिहास विषय लेकर मनोयोग से अध्ययन में जुट गया । चूँकि छात्रावासों के माहौल से मैं पूर्व परिचित था, सो किराए पर कमरा लेकर ही रहना उचित समझा और ममफोर्डगंज में रहने लगा। जहाँ अन्य मित्र मेडिकल व इंजीनियरिंग की कोचिंग में व्यस्त थे, वहीं मैं अर्जुन की भांति सीधे आई0ए0एस0-पी0सी0एस0 रूपी कैरियर को चिडि़या की आँख की तरह देख रहा था. कभी-कभी दोस्त व्यंग्य भी कसते कि-‘‘क्या अभी से सिविल सर्विसेज की रट लगा रखी है? यहाँ पर जब किसी का कहीं चयन नहीं होता तो वह सिविल सर्विसेज की परीक्षा अपने घर वालों को धोखे में रखने व शादी के लिए देता है।’’ इन सबसे बेपरवाह मैं मनोयोग से अध्ययन में जुटा रहा. पिताजी ने कभी पैसे व सुविधाओं की कमी नहीं होने दी और मैंने कभी उनका सर नीचे नहीं होने दिया और अपने प्रथम प्रयास में ही सिविल- सर्विसेज की परीक्षा में चयनित हुआ !!

मेरी यह सफलता इस रूप में भी अभूतपूर्व रही कि नवोदय विद्यालय संस्था से आई0ए0एस0 व एलाइड सेवाओं में चयनित मैं प्रथम विद्यार्थी था और यही नहीं अपने पैतृक स्थान सरांवा, जौनपुर व तहबरपुर, आजमगढ़ जैसे क्षेत्र से भी इस सेवा में चयनित मैं प्रथम व्यक्ति था । मेरा चयन पिता जी के लिए भी काफी महत्वपूर्ण था क्योंकि उस समय उत्तर प्रदेश की राजकीय सेवाओं में सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 58 वर्ष थी और पिताजी वर्ष 2001 में ही सेवानिवृत्त होने वाले थे। पर यह सुखद संयोग रहा कि मेरे चयन पश्चात ही उत्तर प्रदेश सरकार ने सेवानिवृत्ति की आयु सीमा 60 वर्ष कर दी और पिताजी को इसके चलते दो साल का सेवा विस्तार मिल गया।

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पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी का संक्षिप्त परिचय :

20 दिसम्बर 1943 को सरांवा, जौनपुर (उ0प्र0) में जन्म। काशी विद्यापीठ, वाराणसी (उ0प्र0) से 1964 में समाज शास्त्र में एम.ए.। वर्ष 1967में खण्ड प्रसार शिक्षक (कालांतर में ‘स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी’ पदनाम परिवर्तित) के पद पर चयन। आरंभ से ही अध्ययन-लेखन में अभिरुचि। उत्तर प्रदेश सरकार में वर्ष 2003 में स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से सेवानिवृत्ति पश्चात सम्प्रति रचनात्मक लेखन व अध्ययन, बौद्धिक विमर्श एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक भागीदारी। सामाजिक व्यवस्था एवं आरक्षण (1990) नामक पुस्तक प्रकाशित। लेखों का एक अन्य संग्रह प्रेस में। भारतीय विचारक, नई सहस्राब्दि का महिला सशक्तीकरणः अवधारणा, चिंतन एवं सरोकार, नई सहस्राब्दि का दलित आंदोलनः मिथक एवं यथार्थ सहित कई चर्चित पुस्तकों में लेख संकलित।

देश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं: युगतेवर, समकालीन सोच, संवदिया, रचना उत्सव, नव निकष, गोलकोण्डा दर्पण, समय के साखी, सोच विचार, इंडिया न्यूज, सेवा चेतना, प्रतिश्रुति, झंकृति, हरसिंगार, शोध प्रभांजलि, शब्द, साहित्य क्रान्ति, साहित्य परिवार, साहित्य अभियान, सृजन से, प्राची प्रतिभा, संवदिया, अनीश, सांवली, द वेक, सामथ्र्य, सामान्यजन संदेश, समाज प्रवाह, जर्जर कश्ती, प्रगतिशील उद्भव, प्रेरणा अंशु, यू0एस0एम0 पत्रिका, नारायणीयम, तुलसी प्रभा, राष्ट्र सेतु, पगडंडी, आगम सोची, शुभ्र ज्योत्स्ना, दृष्टिकोण, बुलंद प्रभा, सौगात, हम सब साथ-साथ, जीवन मूल्य संरक्षक न्यूज, श्रुतिपथ, मंथन, पंखुड़ी, सुखदा, सबलोग, बाबू जी का भारत मित्र, बुलंद इण्डिया, टर्निंग इण्डिया, इसमासो, नारी अस्मिता, अनंता, उत्तरा, अहल्या, कर्मश्री, अरावली उद्घोष, युद्धरत आम आदमी, अपेक्षा, बयान, आश्वस्त, अम्बेडकर इन इण्डिया, अम्बेडकर टुडे, दलित साहित्य वार्षिकी, दलित टुडे, बहुरि नहीं आवना, हाशिये की आवाज, आधुनिक विप्लव, मूक वक्ता, सोशल ब्रेनवाश, आपका आइना, कमेरी दुनिया, आदिवासी सत्ता, बहुजन ब्यूरो, वैचारिक उदबोध, प्रियंत टाइम्स, शिक्षक प्रभा, विश्व स्नेह समाज, विवेक शक्ति, हिन्द क्रान्ति, नवोदित स्वर, ज्ञान-विज्ञान बुलेटिन, पब्लिक की आवाज, समाचार सफर, सत्य चक्र, दहलीज, दि माॅरल, अयोध्या संवाद, जीरो टाइम्स, तख्तोताज, दिनहुआ, यादव ज्योति, यादव कुल दीपिका, यादव साम्राज्य, यादव शक्ति, यादव निर्देशिका सह पत्रिका, इत्यादि में विभिन्न विषयों पर लेख प्रकाशित।

इंटरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं: सृजनगाथा, रचनाकार, साहित्य कुंज, साहित्य शिल्पी, हिन्दीनेस्ट, हमारी वाणी, परिकल्पना ब्लाॅगोत्सव, स्वतंत्र आवाज डाॅट काम, नवभारत टाइम्स, वांग्मय पत्रिका, समय दर्पण, युगमानस इत्यादि पर लेखों का प्रकाशन।

”यदुकुल” ब्लॉग (http://www.yadukul.blogspot..in/) का 10 नवम्बर 2008 से सतत् संचालन।

सामाजिक न्याय सम्बन्धी लेखन, विशिष्ट कृतित्व एवं समृद्ध साहित्य-साधना हेतु राष्ट्रीय राजभाषा पीठ, इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’ (2006), भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा ‘ज्योतिबा फुले फेलोशिप सम्मान‘ (2007) व डाॅ0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान (2011), आसरा समिति, मथुरा द्वारा ‘बृज गौरव‘ (2007), समग्रता शिक्षा साहित्य एवं कला परिषद, कटनी, म0प्र0 द्वारा ‘भारत-भूषण‘ (2010), रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इण्डिया द्वारा ‘अम्बेडकर रत्न अवार्ड 2011‘ से सम्मानित।
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( पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी, माँ श्रीमती बिमला यादव जी, कृष्ण कुमार यादव, पत्नी श्रीमती आकांक्षा और बेटियाँ अक्षिता और अपूर्वा)
(पिता जी और मम्मी जी)

(बहन किरन यादव के शुभ-विवाह पर आशीर्वाद देते पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी, श्वसुर श्री राजेंद्र प्रसाद जी, MLC श्री कमला प्रसाद यादव जी और श्री समीर सौरभ जी (उप पुलिस अधीक्षक)
(बहन किरन यादव की शादी के दौरान रस्म निभाते मम्मी-पापा)
(पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी और वरिष्ठ बाल-साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु जी)
(पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी)
(पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव जी, नाना स्वर्गीय श्री दलजीत यादव जी, श्री वैदेही यादव जी)
-कृष्ण कुमार यादव : शब्द-सृजन की ओर

(पुत्र कृष्ण कुमार यादव द्वारा फादर्स-डे पर पोस्ट की गई एक पोस्ट)

सोमवार, 11 जून 2012

अंतर्राष्ट्रीय कराटे प्रशिक्षक संदेश यादव सम्मानित

गुड़गांव के कराटे खिलाड़ी व अंतर्राष्ट्रीय कराटे प्रशिक्षक सेंसई संदेश यादव मध्यप्रदेश के देवास जिले में सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षक के सम्मान से सम्मानित हुए हैं। यह अवार्ड उनकी कराटे में उपलब्धियों को ध्यान में रखते हुए मध्यप्रदेश सरकार में पाठय पुस्तक निगम के चेयरमैन राय सिंह सैंधव द्वारा एक समारोह के दौरान दिया गया। देश के कराटे प्रशिक्षक के रुप में संदेश यादव राजीव गांधी एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। इसके पूर्व संदेश यादव को वर्ष 2009 में भारत में सबसे कम उम्र का युवा प्रतिनिधि का गौरव अंतर्राष्ट्रीय कराटे विश्वविद्यालय कनाडा द्वारा सदस्यता देने के साथ प्राप्त हुआ।
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शनिवार, 9 जून 2012

डिम्पल यादव ने रचा इतिहास : निर्विरोध बनीं सांसद

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी और कन्नौज लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) की प्रत्याशी डिम्पल यादव आज शनिवार को आखिरकार निर्विरोध सांसद चुन ली गईं।

कन्नौज की जिलाधिकारी सेल्वा कुमारी जे ने शनिवार को ठीक तीन बजे डिम्पल के निर्विरोध निर्वाचित होने की घोषणा की। जीत की घोषणा के साथ ही सपा में खुशी की लहर दौड़ गयी। डिम्पल के निर्विरोध निर्वाचित होने की आधिकारिक घोषणा होने के बाद सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने इसे जनता की जीत करार दिया। मुलायम ने कहा कि यह जनता की जीत है। डिम्पल ने इतिहास कायम किया है। अब पूरी लगन के साथ वह अपने क्षेत्र की सेवा करेंगी।

डिम्पल यादव के खिलाफ नामांकन पत्र दाखिल करने वाले मात्र दो उम्मीदवारों निर्दलीय संजू कटियार और संयुक्त समाजवादी दल के उम्मीदवार दशरथ शंखवार ने शुक्रवार को ही अपना नामांकन वापस ले लिया था। कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी जहां इस सीट से अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का निर्णय लिया था जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अंतिम समय में अपने उम्मीदवार जगदेव सिंह यादव के नाम की घोषणा की थी लेकिन समय सीमा समाप्त हो जाने की वजह से वह अपना नामांकन दाखिल नहीं कर पाए थे।

गौरतलब है कि वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में डिम्पल फिरोजाबाद सीट से चुनाव लड़ी थीं लेकिन इस चुनाव में उन्हें बॉलीवुड अभिनेता और कांग्रेस के उम्मीदवार राज बब्बर से शिकस्त खानी पडी थी।

डिम्पल यादव ने बनाया रिकार्ड :

डिंपल यादव प्रदेश की पहली ऐसी महिला हैं जिनके खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। संयोग भी एक रिकार्ड के रूप में ही देखा जाएगा कि डिंपल जिस लोकसभा के लिए चुनाव हारीं, उसी में निर्विरोध जीतकर पहुंचेंगी। यह तथ्य भी विशिष्टता लिए हुए हैं कि वह ऐसी सांसद हैं जिनके पति मुख्यमंत्री हैं। लोकसभा में उनके साथ श्वसुर व देवर भी होंगे।

यूपी में साठ साल बाद आया यह मौका:-

टिहरी में जीते मानवेंद्र शाह को यदि उत्तराखंड में मान लिया जाए तो प्रदेश मे 60 साल बाद यह अवसर आया है जबकि लोकसभा का चुनाव कोई उम्मीदवार निर्विरोध जीता है। एक संयोग ही है कि इससे पहले 1952 में पीडी टंडन भी उप चुनाव में ही जीते थे। डिंपल की जीत भी उप चुनाव में ही हुई है। देश में उप चुनाव के दौरान निर्विरोध जीतने वाले लोगों की संख्या डिंपल को मिलाकर 9 है। 22 उम्मीदवार सामान्य चुनावों में जीते हैं।

दो दशक बाद कोई निर्विरोध:-

यह 31 वां अवसर है जबकि लोकसभा चुनाव में कोई उम्मीदवार निर्विरोध जीता है। इससे पहले 1989 नेशनल कांफ्रेस के मो. शफी बट श्रीनगर से निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। लगभग दो दशक बाद देश में कोई निर्विरोध चुना गया है। आजादी के बाद 1951 में हुए देश के पहले चुनाव में पांच प्रत्याशी निर्विरोध चुने गए थे। इसके बाद 1952 में हुए उप चुनाव में इलाहाबाद पश्चिम में कांग्रेस के पुरुषोत्तम दास टंडन निर्विरोध जीते। 1962 में टिहरी गढ़वाल से वहां के राजा मानवेंद्र शाह ने जब चुनाव लड़ने का फैसला किया तो उनके मुकाबले कोई प्रत्याशी आगे नहीं आया। इस चुनाव में जनसंघ के रंगीलाल ने परचा भरा था लेकिन वापस ले लिया था। इससे पहले हुए चुनाव में बीकानेर के पूर्व महाराजा और निशानेबाज करणी सिंह भी निर्विरोध निर्वाचित हुए थे। 1962 में ही उड़ीसा में पूर्व मुख्यमंत्री हरेकृष्ण मेहताब को निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था।

डिम्पल यादव को यदुकुल की तरफ से हार्दिक बधाइयाँ !!


-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल

शुक्रवार, 8 जून 2012

यू पी बोर्ड हाई स्कूल के रिजल्ट में पूजा यादव और अन्ना यादव बने टापर

उत्तर प्रदेश हाई स्कूल [कक्षा 10] का परिणाम शुक्रवार,8 जून, 2012 को घोषित हुआ। पूजा यादव और आकांक्षा सिंह ने सर्वाधिक 96.57फीसद अंक हासिल कर प्रदेश में अव्वल स्थान हासिल किया। दोनों लड़कियां बाराबंकी के महारानी लक्ष्मी बाई इंटर कॉलेज की छात्राएं हैं।

लड़कों में अन्ना यादव ने 96.50 बाजी मारी। अन्ना औरैया के सरस्वती विद्या मंदिर का छात्र है।

कुल परिणाम 83.75 प्रतिशत रहा। इसमें छात्राओं का प्रतिशत 88.95 और लड़कों का 76.91 रहा। हाईस्कूल में सतत एवं व्यापक मूल्यांकन प्रणाली [सीसीई] लागू होने के कारण हाईस्कूल के अंकपत्र पर अंकों और डिवीजन के बजाय ग्रेड का उल्लेख होगा।

सभी को यदुकुल की तरफ से बधाइयाँ !!

-राम शिव मूर्ति यादव : यदुकुल