शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्यारी पाखी को जन्मदिन की बधाइयाँ

आज हमारी पोती (Grand daughter) अक्षिता (पाखी) का जन्म-दिन है. पाखी के जन्मदिन पर दादा-दादी की तरफ से खूब सारा प्यार और आशीष. पाखी जीवन में खूब उन्नति करे और अपने परिवार, समाज, राष्ट्र का नाम समृद्ध और रोशन करे. पाखी तो हमसे बहुत दूर अंडमान में है, पर भला दादा-दादी के दिल से कैसे दूर हो सकती है. नन्हीं सी पाखी जब भी यहाँ आती है, खूब धमाल मचाती है. फोन पर तो न जाने कितनी सारी बातें बताती है. पाखी का एक ब्लॉग भी है-पाखी की दुनिया. कई बार तो लगता है कि काश पाखी परी बनकर हमारे पास उड़ आती.



पाखी के लिए कानपुर से डा0 दुर्गाचरण मिश्र जी ने एक प्यारी सी कविता भेजी है. इसे उन्होंने पाखी के कानपुर में रहने के दौरान लिखा था, पर अब इसे परिमार्जित करते हुए नए सिरे से भेजा है. आप भी इसका आनंद लें और पाखी को ढेर सारा आशीर्वाद और प्यार दें-

प्यारी-न्यारी पाखी

अक्षिता (पाखी) मेरा नाम है
सब करते मुझको प्यार
मम्मी-पापा की लाडली
मिलता जी भर खूब दुलार।

कानपुर नगर में जन्म लिया
25 मार्च 2006, दिन शनिवार
मम्मी-पापा हुए प्रफुल्लित
पूरा हुआ सपनों का संसार।

दादा-दादी, नाना-नानी
सब देखने को हुए बेकरार
मौसी, बुआ, मामा-मामी,
चाचू लाए खूब उपहार।

नन्हीं सी नटखट गुडि़या
सब रिझायें बार-बार
कितनी प्यारी किलकारी
घर में आये खूब बहार ।

मम्मी-पापा संग आ गई
अब, अण्डमान-निकोबार
यहाँ की दुनिया बड़ी निराली
प्रकृति की छाई है बहार ।

कार्मेल स्कूल में हुआ एडमिशन
प्लेयिंग, डांसिंग, ड्राइंग से प्यार
एल.के.जी. में पढ़ने जाती
मिला नए दोस्तों का संसार ।

समुद्र तट पर खूब घूमती
देखती तट और पहाड़
खूब जमकर मस्ती करती
और जी भरकर धमाल ।

मिल गई इक प्यारी बहना
खुशियों का बढ़ा संसार
तन्वी उसका नाम है
करती उसको मैं खूब प्यार ।

डा0 दुर्गाचरण मिश्र
अर्थ मंत्री- उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मलेन,
अध्यक्ष- साहित्य मन्दाकिनी (साहित्यिक संस्था)
248 सी-1 इंदिरानगर, कानपुर-208026

मंगलवार, 22 मार्च 2011

नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति : राधा-कृष्ण


एक बार राधा जी ने श्रीकृष्ण से पूछा- हे श्रीकृष्ण ! आप प्रेम तो मुझसे करते हों परंतु विवाह मुझसे नहीं किया, ऐसा क्यों? मैं अच्छे से जानती हूँ कि आप साक्षात ईश्वर ही हो और आप कुछ भी कर सकते हों, भाग्य का लिखा बदलने में आप सक्षम हो, फिर भी आपने रुक्मणि से शादी की, मुझसे नहीं।

राधा जी की यह बात सुनकर श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया-''हे राधे, विवाह दो लोगों के बीच होता है। विवाह के लिए दो अलग-अलग व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। आप मुझे यह बताओं कि राधा और कृष्ण में दूसरा कौन है? हम तो एक ही हैं। फिर हमें विवाह की क्या आवश्यकता है।'' श्रीकृष्ण जी का यह उत्तर सुनकर राधा जी निरुत्तर रह गईं.

वाकई नि:स्वार्थ प्रेम, विवाह के बंधन से अधिक पवित्र और महान होता है, इसीलिए आज भी राधा-कृष्ण नि:स्वार्थ प्रेम की प्रतिमूर्ति रूप में पूजे जाते हैं !!

गुरुवार, 17 मार्च 2011

जगप्रसिद्ध है बरसाने की होली

होली के रंग अभी से फगुनाहट में रंग बिखेरने लगे हैं. होली की रंगत बरसाने की लट्ठमार होली के बिना अधूरी ही कही जायेगी। कृष्ण-लीला भूमि होने के कारण फाल्गुन शुल्क नवमी को ब्रज में बरसाने की लट्ठमार होली का अपना अलग ही महत्व है। ब्रज में तो वसंत पंचमी के दिन ही मंदिरों में डांढ़ा गाड़े जाने के साथ ही होली का शुभारंभ हो जाता है। बरसाना में हर साल फाल्गुन शुक्ल नवमी के दिन होने वाली लट्ठमार होली देखने व राधारानी के दर्शनों की एक झलक पाने के लिए यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक देश-विदेश से खिंचे चले आते हैं। इस दिन नन्दगाँव के कृष्णसखा ‘हुरिहारे’ बरसाने में होली खेलने आते हैं, जहाँ राधा की सखियाँ लाठियों से उनका स्वागत करती हैं। यहाँ होली खेलने वाले नंदगाँव के हुरियारों के हाथों में लाठियों की मार से बचने के लिए मजबूत ढाल होती है।

परंपरागत वेशभूषा में सजे-धजे हुरियारों की कमर में अबीर-गुलाल की पोटलियाँ बंधी होती हैं तो दूसरी ओर बरसाना की हुरियारिनों के पास मोटे-मोटे तेल पिलाए लट्ठ होते हैं। बरसाना की रंगीली गली में पहुँचते ही हुरियारों पर चारों ओर से टेसू के फूलों से बने रंगों की बौछार होने लगती है। परंपरागत शास्त्रीय गान ‘ढप बाजै रे लाल मतवारे को‘ का गायन होने लगता है। हुरियारे ‘फाग खेलन बरसाने आए हैं नटवर नंद किशोर‘, का गायन करते हैं तो हुरियारिनें ‘होली खेलने आयै श्याम आज जाकूं रंग में बोरै री‘, का गायन करती हैं। भीड़ के एक छोर से गोस्वामी समाज के लोग परंपरागत वाद्यों के साथ महौल को शास्त्रीय रुप देते हैं। ढप, ढोल, मृदंग की ताल पर नाचते-गाते दोनों दलों में हंसी-ठिठोली होती है। हुरियारिनें अपनी पूरी ताकत से हुरियारों पर लाठियों के वार करती हैं तो हुरियार अपनी ढालों पर लाठियों की चोट सहते हैं। हुरियारे मजबूत ढालों से अपने शरीर की रक्षा करते हैं एवं चोट लगने पर वहाँ ब्रजरज लगा लेते हैं।

बरसाना की होली के दूसरे दिन फाल्गुन शुक्ल दशमी को सायंकाल ऐसी ही लट्ठमार होली नन्दगाँव में भी खेली जाती है। अन्तर मात्र इतना है कि इसमें नन्दगाँव की नारियाँ बरसाने के पुरूषों का लाठियों से सत्कार करती हैं। इसमें बरसाना के हुरियार नंदगाँव की हुरियारिनों से होली खेलने नंदगाँव पहुँचते हैं। फाल्गुन की नवमी व दशमी के दिन बरसाना व नंदगाँव के लट्ठमार आयोजनों के पश्चात होली का आकर्षण वृन्दावन के मंदिरों की ओर हो जाता है, जहाँ रंगभरी एकादशी के दिन पूरे वृंदावन में हाथी पर बिठा राधावल्लभ लाल मंदिर से भगवान के स्वरुपों की सवारी निकाली जाती है। बाद में भी ठाकुर के स्वरूप पर गुलाल और केशर के छींटे डाले जाते हैं। ब्रज की होली की एक और विशेषता यह है कि धुलेंडी मना लेने के साथ ही जहाँ देश भर में होली का खूमार टूट जाता है, वहीं ब्रज में इसके चरम पर पहुँचने की शुरुआत होती है।

कृष्ण कुमार यादव

बुधवार, 9 मार्च 2011

'यदुकुल' ब्लॉग से मैटर चोरी कर छाप रही हैं पत्र-पत्रिकाएं...

यह पोस्ट लिखने से मैं बचना चाह रहा था, पर परिस्थितियां ही ऐसी पैदा हो गईं कि लिखना पड़ रहा है. इधर अक्सर देख रहा हूँ कि 'यदुकुल' पर प्रकाशित पोस्ट को आर्कुट, फेसबुक इत्यादि सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटों पर लोग आपने नाम से धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं. यहाँ तक कि यदुकुल का जिक्र भी नहीं करते. ऐसा करने वालों में युवा वर्ग के लोग ज्यादा हैं. यह बात समझ से परे है कि किसी सामग्री को चुराकर कट-पेस्ट कर आपने नाम से प्रकाशित करने में क्या आनंद आता है. जिस वंश में तमाम बुद्धिजीवी और लेखक भरे हुए हैं, वहाँ ऐसे चोरों से क्या सन्देश जा रहा है ? मुझे बेहद अच्छा लगता यदि कोई यादव मुझे यदुकुल के लिए सामग्री भेजता, पर यहाँ तो उलटे यदुकुल कि सामग्री कि ही चोरी की जा रही है.

बात यहीं तक नहीं है, यादवों पर केन्द्रित तमाम पत्र-पत्रिकाएं भी अब मेहनत करने और चीजों को ढूंढने की बजे 'यदुकुल' ब्लॉग से मैटर गायब करने लगी हैं. शायद उन्हें ब्लॉग का जिक्र करने में शर्म आती है कि कहीं उनकी मठैती पर ही प्रशन चिन्ह ना लग जाय. हाल ही में हमारे पास दिल्ली से एक शुभचिंतक पाठक का ई-मेल आया कि दिल्ली से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'यादव कुल दीपिका' के फरवरी-2011 अंक में पृष्ठ संख्या 30 पर मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव नामक रिपोर्ट किसी यादव रक्षक एवं मंच स्मृति से साभार दिया गया है. सबसे मजेदार तो यह है कि यह रिपोर्ट यदुकुल पर 27 सितम्बर, 2010 को प्रकाशित है और इसे हू-ब-हू कापी कर 'यादव रक्षक' और 'यादव कुल दीपिका' ने प्रकाशित किया है, जो कि घोर आपत्तिजनक है. सन्दर्भ हेतु 'यादव कुल दीपिका' का वह पेज यहाँ स्कैन कर लगाया जा रहा है.

मेरा सभी यादव बंधुओं से अनुरोध है कि कृपया इस प्रकार की चोरी को प्रोत्साहित ना करें और ना ही कोई पत्र-पत्रिका, वेबसाईट या सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट पर बनाये गए ग्रुप 'यदुकुल' पर प्रकाशित किसी सामग्री का बिना इसका कोई रिफरेन्स दिए इस्तेमाल करें. साभार इस्तेमाल किये जाने की अवस्था में इसकी सूचना हमारे ई- मेल या ब्लॉग के माध्यम से दी जाय.

आपने शुभचिंतकों और पाठकों से भी हमारा अनुरोध है कि ऐसी किसी भी चोरी को हमारे संज्ञान में लायें, ताकि इस प्रकार की दुष्प्रवृत्ति को दूर किया जा सके. यहाँ राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण‘ जी की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

अंधकार है वहाँ, जहाँ आदित्य नहीं है;
मुर्दा है वह देश, जहाँ साहित्य नहीं है।

... यही बात जातियों पर भी लागू होती है. यदुवंश को समृद्ध बनाने के लिए समृद्ध लेखनी और विचारों की जरुरत है, न कि ऐसे मुर्दा लोगों की जो दूसरों के साहित्य, लेख और विचारों को चुराकर अपना कहें !!

बुधवार, 2 मार्च 2011

आकांक्षा यादव को 'न्यू ऋतंभरा भारत-भारती साहित्य सम्मान'

युवा कवयित्री एवँ साहित्यकार सुश्री आकांक्षा यादव को हिन्दी साहित्य में प्रखर रचनात्मकता एवँ अनुपम कृतित्व के लिए छत्तीसगढ़ की प्रमुख साहित्यिक संस्था न्यू ऋतंभरा साहित्य मंच, दुर्ग द्वारा ''भारत-भारती साहित्य सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया है। गौरतलब है कि सुश्री आकांक्षा यादव की आरंभिक रचनाएँ दैनिक जागरण और कादम्बिनी में प्रकाशित हुई और फ़िलहाल वे देश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। नारी विमर्श, बाल विमर्श एवँ सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली सुश्री आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनों/पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं। पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय सुश्री आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं।

आपकी तमाम रचनाओं के लिंक विकिपीडिया पर भी दिए गए हैं। 'शब्द-शिखर', 'सप्तरंगी-प्रेम', 'बाल-दुनिया' और 'उत्सव के रंग' ब्लॉग आप द्वारा संचालित/सम्पादित हैं। 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' पुस्तक का संपादन करने वाली सुश्री आकांक्षा के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डॉ. राष्ट्रबन्धु जी ने ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के एक कॉलेज में प्रवक्ता सुश्री आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहाँ रहकर भी हिन्दी को समृद्ध कर रही हैं। श्री यादव भी हिन्दी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं। एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

सुश्री आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, ग्वालियर साहित्य एवँ कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’, अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि इत्यादि प्रमुख हैं। सुश्री आकांक्षा यादव को इस अलंकरण हेतु हार्दिक बधाईयाँ।

गोवर्धन यादव, संयोजक-राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, छिन्दवाड़ा
103 कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा (म.प्र.)-480001