सोमवार, 20 दिसंबर 2010

आज हम भी अपना जन्म-दिन मना रहे हैं...


आज हम भी अपना जन्म-दिन मना रहे हैं. 1943 से लेकर जीवन का एक लम्बा पड़ाव पूरा हो चुका है, जहाँ बड़े सुकून से अपनी जिंदगी प्रवाहमान है. गुलाम भारत में जन्म लिए, पर आजाद भारत में सांसें ले रहे हैं, यही क्या कम है. अतीत के पन्ने पलटता हूँ तो लगता है पूरी एक किताब ही लिख डालूँ. सरकारी नौकरी से रिटायर्ड होने के बाद परिवार का हर पल साथ और अध्ययन, लेखन और समाज सेवा में बड़ा सुकून मिलता है. बेटे-बहू, बेटी-दामाद सब जीवन में सेटल होकर अच्छी पोस्टों पर विराजमान हैं, बस छोटा बेटा अभी कैरियर की जद्दोजहद में है, सो वह भी अपनी लाइन पकड़ लेगा।
ईश्वर की कृपा से जीवन ने बहुत कुछ दिया है. आज भी कुछ नया सीखने की लालसा बनी रहती है और पत्र-पत्रिकाओं, किताबों को अनवरत पलटता रहता हूँ, नहीं तो दोस्तों के साथ गपबाजी तो है ही. आजकल अपने प्रकाशित लेखों को पुस्तकाकार रूप में लाने की सोच रहा हूँ. देखिये, शायद अगले जन्मदिन तक यह भी हो जाय. फ़िलहाल आज तो प्रकृति के उस अद्भुत पल को महसूस करने का दिन है, जब इस धरा पर अंकुरण हुआ था।
हिंदी ब्लागरों के जन्मदिन पर भी पाबला जी और अन्य ब्लागरों ने बधाई प्रेषित की है. ऑरकुट, फेसबुक और ई-मेल पर भी जन्मदिन की बधाइयाँ मिली हैं. आप सभी की शुभकामनाओं के लिए ह्रदय से आभार !!

मंगलवार, 14 दिसंबर 2010

स्पोर्ट्स-एडवेंचर में नाम कमाते यदुवंशी

खेल एवं एडवेंचर की दुनिया में भी यदुवंश के तमाम खिलाड़ी अपना डंका बजा रहे हैं। क्रिकेट के क्षेत्र में एन० शिवलाल यादव, हेमू लाल यादव, विजय यादव, ज्योति यादव, जे0पी0 यादव और उमेश यादव ने देश को गौरवान्वित किया तो आज हरियाणा की अण्डर-19 किक्रेट टीम के कोच विजय यादव, उ0प्र0 की अण्डर-16 किक्रेट टीम के कोच विकास यादव जैसे तमाम नए नाम उभर रहे हैं। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के उपाध्यक्ष एन० शिव लाल यादव, दक्षिण ज़ोन का प्रतिनिधित्व करते हैं और सीनियर टूर्नामेंट कमेटी के अध्यक्ष भी हैं। दक्षिण ज़ोन की महिला समिति में विद्या यादव भी शामिल हंै ज़ो कि आई०सी०सी० महिला टी-20 विश्व कप क्रिकेट की टीम मैनेजर भी रहीं। भारत की टेस्ट और वन डे टीम में खेल चुके विजय यादव 1996 से क्रिकेट कोचिंग दे रहे हैं। उन्हें बीसीसीआई की तरफ से विकेट कीपिंग एकेडमी का कोच भी नियुक्त किया गया है। आई0पी0एल0 के विभिन्न सत्रों में भी विभिन्न यादव क्रिकेट हेतु चयनित हुए। लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव का चयन अण्डर-19 किक्रेट टीम हेतु किया गया एवं आई0पी0एल0-20 कप के प्रथम सत्र में डेयर डेविल्स (दिल्ली) टीम में चयनित किया गया, दुर्भाग्यवश उन्हें खेलने का मौका नहीं मिला। इसी प्रकार पूर्व टेस्ट खिलाड़ी एन० शिव लाल यादव के पुत्र एवं हैदराबाद रणजी कप्तान अर्जुन यादव का चयन डेक्कन चार्जस (हैदराबाद) में किया गया। आई0पी0एल0 के तीसरे सत्र में केदार जाधव व उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एवं अर्जुन यादव (हैदराबाद डेक्कन चार्जर्स) का चयन किया गया। आई0पी0एल0 मैचों के दौरान ही नागपुर (महाराष्ट्र) के नजदीक खापरखेड़ा की कोयला खदान के मजदूर के बेटे उमेश यादव (दिल्ली डेयरडेविल्स) एक शानदार गेंदबाज के रूप में उभरे एवं उन्हें भारतीय क्रिकेट टीम में भी खेलने का मौका मिला। उत्तर प्रदेश रणजी क्रिकेट टीम में आशीष यादव नया चेहरा है। बॉलीवुड के जाने माने-हास्य कलाकार राजपाल यादव टी-10 गली क्रिकेट सीजन-2 के लिए कानपुर गली क्रिकेट टीम के मालिक बन गए हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश क्रिकेट की अण्डर-19 महिला टीम में आगरा की पूनम यादव को कप्तानी सौंपी गई है। नेशनल क्रिकेट अकादमी बंगलौर में इंडिया क्रिकेट टीम के फिजिकल ट्रेनर के रूप में किशन सिंह यादव बखूबी दायित्वों का निर्वाह करते रहे हैं।

भारत के प्रथम व्यक्तिगत ओलंपिक मेडलिस्ट खाशबा दादा साहब जाधव एवं बीजिंग ओलंपिक (2008) में कुश्ती में कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार यदुकुल की ही परम्परा के वारिस हैं। वर्ष 2010 में कुश्ती का विश्व चैंपियन खिताब अपने नाम करके सुशील कुमार ऐसा करने वाले प्रथम भारतीय पहलवान बन गए। वर्ष 2009 मंे सुशील कुमार को देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांँधी खेल रत्न से नवाजा गया तो गिरधारी लाल यादव (पाल नौकायन) को अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी परंपरा में दिल्ली में आयोजित राष्ट्रमंडल खेलों में जहाँ सुशील कुमार ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता, वहीं 74 किलोग्राम फ्री स्टाइल कुश्ती स्पर्धा में नरसिंह यादव पंचम (मूलतः चोलापुर, बनारस के, अब मुंबई में) ने भी स्वर्ण पदक जीता। गौरतलब है कि इससे पूर्व सीनियर एशियाई कुश्ती प्रतियोगिता में नरसिंह यादव ने देश को पहला स्वर्ण पदक दिलाकर पूरे देश का नाम रोशन किया था। राष्ट्रमंडल खेलों की निशानेबाजी स्पर्धा में कविता यादव ने सुमा शिरूर के साथ कांस्य पदक जीतकर नाम गौरवान्वित किया। विश्व मुक्केबाजी (1994) में कांस्य पदक विजेता, ब्रिटेन में पाकेट डायनामो के नाम से मशहूर भारतीय फ्लाईवेट मुक्केबाज धर्मेन्द्र सिंह यादव ने देश में सबसे कम उम्र में ‘अर्जुन पुरस्कार’ प्राप्त कर कीर्तिमान बनाया। विकास यादव, मुक्केबाजी का चर्चित चेहरा है। आन्ध्र प्रदेश के बिलियर्डस व स्नूकर खिलाड़ी सिंहाचलम जो कि बिलियर्ड्स के अन्तर्राष्ट्रीय रेफरी भी हैं, बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाजी के राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे श्याम सिंह यादव, कुश्ती में पन्ने लाल यादव, श्यामलाल यादव, गंगू यादव जैसे तमाम खिलाड़ी यादवों का नाम रोशन कर रहे हैं। बनारसी मुक्केबाज छोटेलाल यादव ने सैफ खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया। जानी-मानी पर्वतारोही संतोष यादव जिन्दगी में मुश्किलों के अनगिनत थपेड़ों की मार से भी विचलित नहीं हुईं और अपनी इस हिम्मत की बदौलत वह माउंट एवरेस्ट की दो बार चढाई करने वाली विश्व की पहली महिला बनीं। इसके अलावा वे कांगसुंग ;ज्ञंदहेीनदहद्ध की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर सफलतापूर्वक चढ़ने वाली विश्व की पहली महिला भी हैं। उन्हांेने पहले मई 1992 में और तत्पश्चात मई सन् 1993 में एवरेस्ट पर चढ़ाई करने में सफलता प्राप्त कीे। इण्डियन ओलंपिक एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश कालमाड़ी यदुवंश से ही हैं। अर्जुन पुरस्कार विजेता व महिला हाॅकी टीम की पूर्व कप्तान मधु यादव राष्ट्रीय महिला हाकी टीम की मैनेजर हैं। भारतीय भारोत्तोलन संघ के सचिव सहदेव यादव हंै।
महिला मुक्केबाजी में सोनम यादव (75 कि०ग्रा०) का नाम अपरिचित नहीं रहा। बैंकाक में एशियाई ग्रा0प्रि0 में युवा धावक नरेश यादव ने 1500 मीटर की दौड़ 3।51 सेकण्ड में पूरा कर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता। 27वीं राष्ट्रीय ताइक्वाण्डो प्रतियोगिता में हरियाणा की सरिता यादव ने रजत व पूनम यादव ने कांस्य पदक प्राप्त किया। बैंकाक में एशियाई गंापी तीरंदाजी चैम्पियनशिप में महिला रिवर्स स्पर्धा में नमिता यादव (झारखण्ड) ने भारत के लिए स्वर्ण पदक जीत कर देश का गौरव बढ़ाया। स्वप्नावली यादव (मुंबई) ने महज 8 साल की उम्र में यूनान स्थित 30 किमी0 लम्बी मेसिनिकोस की खाड़ी मात्र 11 घण्टे 10 मिनट में पार करने का विश्व रिकार्ड कायम कर लोगों को दांतों तले अंगुली दबाने पर मजबूर कर दिया। अगस्त 2009 में सम्पन्न उ0प्र0 की सीनियर तैराकी चैम्पियनशिप में कुशीनगर की प्रियंका यादव ने 5 स्वर्ण जीतकर नया कीर्तिमान बनाया। यहीं पर गोताखोरी प्रतियोगिता में डी0एल0डब्ल्यू0 के गोताखोर नवीन यादव व्यक्तिगत चैंपियन बने। रानी यादव (बनारस) एथलेटिक्स में उभरता हुआ नाम है। कहना गलत नहीं होगा कि यदुवंशियों को यदि उचित परिवेश और प्रोत्साहन मिले तो स्पोर्ट्स-गेम और एडवेन्चर के क्षेत्र में वे भारत का नाम वैश्विक स्तर पर रोशन कर सकते हैं।
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It is a matter of pride for all Yadavs that in recently concluded Asian games (2010) in Guangzhou (China), the players from Supreme & Matchless clan of Yaduvansh made their presence count on global level and won the accolades across the globe for their winning, undying & down to earth attitude and performance.
We wholeheartedly appreciate their sincere efforts & endeavor for bringing glory to our great Country and family. Given is the list of players who won the individual Medals and was the part of winning team and who participated in the games.
1. Vikas Krishan Yadav - Gold Medal (Boxing) - 60 kg. Originally belongs to a village of Hissar district in Haryana and put up in Bhiwani. He is also the winner of Junior Olympics and a national champion. The teen sensation of Indian boxing, who has bagged several medals at this age, loves his gond ke ladoo. "He likes his food simple — roti and sabzi. But gond ke ladoo are his weakness, or call it his strength. These are prepared by mixing roasted gond and wheat flour in ghee along with dry fruits," said Darshna Devi, Vikas's mother. "I've already prepared around 10 kg ladoos for him," she added…J
2. Balraj Yadav- Silver Medal (Yachting/Sailing Match Racing) - He belongs to village Parkhotampur, District Rewari, Haryana, currently working as an officer in Indian Navy. There were two Yadavs out of this 5 members winning team.
3. Shekhar Yadav- Silver Medal (Yachting/Sailing Match Racing)- A native of village- Sanoda, District – Alwar, Rajasthan, proudly working as an officer in prestigious Indian Navy, comes from a middle class family.
4. Anup Yadav- Gold Medal- Kabbadi- A proud member of gold winning Kabbadi team, hails from same historical village (of Victoria Cross winner Rao Umrao Singh), Palra, District- Jhajjhar- Haryana. He has been an integral part of unbeatable Indian Kabbadi team.
5. Rajesh Yadav- Silver Medal (Rowing) – A key member of silver medal winning team, comes from a modest background of Village, Kanchanpur, District- Santkabir Nagar of UP.
Apart from these champions, other Yadavs were also part of playing Indian contingent. The list is as follows.
1. Kavita Yadav- The bronze medalist of shooting in CWG 2010 missed this time to win the medal. However her efforts are well appreciated.
2. Nar Singh Pancham Yadav- the Gold Medalist of wresting 75 kg. in CWG 2010, unfortunately couldn’t make it to a medal this time. His sincerity to bring glory to country is worth applauded.
3. Rao Aarti Singh- The proud daughter of former Minister (MOS) - Govt. of India and sitting MP of Gurgaon Sh. Rao Inderjeet Singh, missed to win the medal in Shooting. She has won several Medals in past for India and her eagerness to play and win for our country can be felt in her efforts.
4. Ram Singh Yadav- This man with never to say die attitude stood on 15th position in Men’s marathon. Hope he would carry on his attempts to win medals for us.
We can not neglect the contribution of those krishanvansaj’s who has helped these guys to win Medals. Here we can take out few such names.
Mr. Naresh Yadav- The coach of Silver Medal winning team has been an instrumental inspiration for the team and Mr. Balraj Yadav & Shekhar Yadav. He is also the Coach of Yachting Association of India.
Mr. Jagdish Yadav- The coach of boxing mine of India (Sports Authority of India, Bhiwani), He came into limelight when Bijender singh won the bronze in Olympics in 2008। He is the coach of Mr. Vikash Krishan Yadav,Bijender Singh, Akhil Kumar, Paramjeet Samota, Manoj Kumar etc. who have won several gold medals in CWG and various competition across the planet.


गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

फिल्म व ग्लैमर की दुनिया में यदुवंशी

ग्लैमर की दुनिया की बात ही निराली है। भगवान कृष्ण के वंशजों ने अभी तक तमाम क्षेत्रों में झण्डे गाड़े हैं पर अब फिल्मों और सौंदर्य के क्षेत्र में भी तमाम यदुवंशी दिख जाते हैं। फिलहाल हिंदी और भोजपुरी सिनेमा में तमाम यदुवंशी अपना जौहर दिखा रहे हैं। ग्लैमर की दुनिया अब यादवों के लिए अछूती नहीं रही। बॉलीवुड के जाने-माने हास्य कलाकार राजपाल यादव व रघुवीर यादव पहले से ही अभिनय के क्षेत्र में हैं। करीब डेढ़ सौ फिल्मों में शानदार अभिनय के दम पर 39 वर्षीय राजपाल यादव आज हिंदी सिनेमा की जानी-मानी शख्सियत हैं। रंगमंच पर अभिनय की ठोस बुनियाद के सहारे फिल्मी मनोरंजन दुनिया के सफर पर उत्तर प्रदेश के शाहजहांँपुर से निकले राजपाल यादव लगभग हर तरह के किरदार में फिट नजर आते हैं। पहले खलनायकी में सफलता हासिल करने के बाद कॉमेडी में राजपाल यादव अपना लोहा मनवा चुके हैं। छोटा कद, हंसमुख व्यक्तित्व और जबरदस्त अभिनय राजपाल यादव की पहचान है। कॉमेडी के जरिए वे लोगों के दिलों पर राज कर रहे है। उनके लीड रोल्स की भी खासी चर्चा हुई है। गाँव से निकलकर मायानगरी मुंबई में अपनी सफलता का सिक्का जमाने वाले राजपाल यादव युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत हैं। 1985 में फिल्म मैसी साहब के लिए दो अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने वाले अभिनेता और लगान, दिल्ली 6, फिराक, डरना मना है, पीपली लाइव फिल्म जैसी फिल्मों में काम कर चुके जाने-माने बॉलीवुड अभिनेता और थिएटर कलाकार रघुबीर यादव बँंधी-बंँधाई जिंदगी से इत्तेफाक नहीं रखने वालों में से हैं और इसी कारण विभिन्न तरह की भूमिकाएं निभाते हैं। अब इस कड़ी में रंगमंच की दुनिया से फिल्मों में प्रवेश करने वाले गुड़गांँव के राजकुमार यादव का नाम भी जुड़ गया ह,ै जिन्होंने ’लव, सैक्स और धोखा’ नामक फिल्म के माध्यम से पदार्पण किया है।

अभिनय से परे भी तमाम यदुवंशी अपनी प्रतिभा का परचम फहरा रहे हैं। बालीवुड में बहुचर्चित सेक्स स्कैंडल में फंँसी मिस जम्मू अनारा गुप्ता के स्कैंडल और विवादित जीवन पर के।के. फिल्म्स क्रिएशन तले निर्माता-निर्देशक कृष्ण कुमार यादव ने मिस अनारा फिल्म बनाकर चर्चा बटोरी थी। पहले ’शब्द’ और फिर महानायक अमिताभ बच्चन और ऑस्कर विजेता अभिनेता बेन किंग्सले को लेकर निर्मित फिल्म ’तीन’ पत्ती की निर्देशक लीना यादव से लेकर संगीता अहीर (प्रोड्यूसर-अपने, वाह लाइफ हो तो ऐसी) तक फिल्मों का सफल निर्माण और निर्देशन कर रही हैं। ‘नन्हंे जैसलमेर‘ फिल्म में बाबी देओल के साथ 10 वर्षीय बाल अभिनेता द्विज यादव ने अपनी भूमिका से लोगों का ध्यान खींचा। यदुवंशियों का दबदबा दक्षिण भारत की फिल्मों में भी दिखता है। इनमें प्रमुख रूप से कासी (तमिल अभिनेता), पारूल यादव (तमिल अभिनेत्री), माधवी (अभिनेत्री), रमेश यादव (कन्नड़ फिल्म प्रोड्यूसर), नरसिंह यादव (तेलगू अभिनेता), अर्जुन सारजा (अभिनेता, निर्देशक-निर्माता), विजय यादव (तेलगू टी.वी.अभिनेता) जैसे तमाम चर्चित नाम दिखते हैं। पारुल यादव फिलहाल भाग्यविधाता और बाहुबलि जैसे हिन्दी धारावाहिकों में भी अभिनय कर रही हंै। इसके अलावा भी तमाम यदुवंशी विभिन्न धारावाहिकों में कार्य कर रहे हैं।

भोजपुरी फिल्मों में आजकल तमाम यदुवंशी सामने आने लगे हैं। भोजपुरी के जुबली स्टार दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ चार साल में 50 लाख रू. की प्राइज वाले जुबली स्टार हैं। उनकी अब तक रिलीज 22 फिल्मों में से 2 गोल्डन जुबली, 4 सिल्वर जुबली, 13 सुपर हिट, 2 औसत और मात्र एक फ्लॉप रहीं। बचपन से फिल्मों के दीवाने रहे दिनेश लाल यादव रात को तीन किमी दूर वीडियो पर फिल्म देखने जाते थे, कुछ साल गायकी में संघर्ष करने के बाद 2003 में टी सीरीज के ‘निरहुआ सटल रहे‘ ने उन्हें लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया और ’निरहुआ’ उनके नाम के साथ चिपक गया। 2005 में फिल्म ‘हमका अहइसा वइसा न समझा‘ में उन्हें बतौर हीरो मौका मिला और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। दिनेश लाल यादव ‘निरूहा‘ ने भोजपुरी फिल्मों को विदेशों तक फैलाकर भारतीय संस्कृति का डंका दुनिया में बजाया है। बिरहा गायकी में अपना सिक्का जमा चुके विजय लाल यादव ने भी अभिनय के क्षेत्र में कदम रखते हुए कई फिल्मांे में काम किया है, बतौर मुख्य अभिनेता उनकी पहली ‘फिल्म बियाह-द फुल इंटरटेनमेंट‘ रही है। इस कड़ी में अब फिल्म ‘दिल तोहरे प्यार में पागल हो गइल‘ के माध्यम से एक नए अभिनेता सोम यादव (भदोही) का आगाज हुआ है। जी नाइन इंटरटेनमेंट के बैनर तले बनी इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक भी यदुवंश के ही कमलेश यादव और राजनारायण यादव हैं। इस फिल्म में सोम यादव के साथ नायिका रूप में हैं, अनारा गुप्ता जिसे फिल्म निर्माता के.के. यादव ने अपनी फिल्म अनारा के माध्यम से कास्ट किया था। इसी प्रकार भोजपुरी फिल्म ‘कबहू छूटे ना ई साथ‘ में अनिल यादव मुख्य भूमिका में हंै। ‘सुन सजना सुन’ में दिनेश अहीर स्पेशल भूमिका में हैं तो इस फिल्म के सह-निर्माता मुन्ना यादव हैं। ईधर दिल्ली में सेक्स रैकेट चलाने वाले बाबा शिवमूर्ति द्विवेदी पर बन रही फिल्म ‘सुहागन की कोख’ के निर्देशक राधेश्याम यादव हैं। गीतकार प्यारेलाल यादव भी तेजी से अपने कदम बढ़ा रहे हैं। पहली बार यदुवंश से मिस इण्डिया चुनी गई एकता चैधरी ने एक नजीर गढ़ी है। गौरतलब है कि वर्ष 2009 में मिस इंडिया यूनिवर्स चुनी गयी एकता चैधरी यदुवंशी हैं। यह पहला मौका था जब ग्लैमर की दुनिया में यदुवंश से कोई इस मुकाम पर पहुंचा। एकता चैधरी दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री चैधरी ब्रह्म प्रकाश की पौत्री और सिद्धार्थ चैधरी की सुपुत्री हैं। इसी प्रतियोगिता में फाइनल में स्थान पाकर आकांक्षा यादव भी चर्चा में रहीं और ‘मिस बोल्ड‘ के खिताब से नवाजी गईं। इससे पूर्व वर्ष 2008 में मनीषा यादव मिस इंडिया की चर्चित प्रतिभागी रही हैं। ज़ी.टी.वी. पर आयोजित सारेगामापा प्रतियोगिता में स्थान पाकर लखनऊ की पूनम यादव भी चर्चा में रहीं।

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

चार यादव विभूतियों पर जारी हुए डाक टिकट

राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर डाक विभाग विभिन्न विभूतियों पर स्मारक डाक टिकट जारी करता है। अब तक चार यादव विभूतियों को यह गौरव प्राप्त हुआ है। इनमें राम सेवक यादव (2 जुलाई 1997), बी0पी0 मण्डल (1 जून, 2001), चै0 ब्रह्म प्रकाश (11 अगस्त, 2001) एवं राव तुलाराम (23 सितम्बर, 2001) शामिल हैं।
जिस प्रथम यदुवंशी के ऊपर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी हुआ, वे हैं राम सेवक यादव। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जनपद में जन्मे राम सेवक यादव ने छोटी आयु में ही राजनैतिक-सामाजिक मामलों में रूचि लेनी आरम्भ कर दी थी। लगातार दूसरी, तीसरी और चैथी लोकसभा के सदस्य रहे राम सेवक यादव लोक लेखा समिति के अध्यक्ष, विपक्ष के नेता एवं उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य भी रहे। समाज के पिछड़े वर्ग के उद्धार के लिए प्रतिबद्ध राम सेवक यादव का मानना था कि कोई भी आर्थिक सुधार यथार्थ रूप तभी ले सकता है जब उससे भारत के गाँवों के खेतिहर मजदूरों की जीवन दशा में सुधार परिलक्षित हो। इस समाजवादी राजनेता के अप्रतिम योगदान के मद्देनजर उनके सम्मान में 2 जुलाई 1997 को स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।

वर्ष 2001 में तीन यादव विभूतियों पर डाक टिकट जारी किये गये। इनमें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं मण्डल कमीशन के अध्यक्ष बी0पी0 मण्डल का नाम सर्वप्रमुख है। स्वतन्त्रता पश्चात यादव कुल के जिन लोगों ने प्रतिष्ठित कार्य किये, उनमें बी0पी0 मंडल का नाम प्रमुख है। बिहार के मधेपुरा जिले के मुरहो गाँव में पैदा हुए बी0पी0 मंडल 1968 में बिहार के मुख्यमंत्री बने। 1978 में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रूप में 31 दिसम्बर 1980 को मंडल कमीशन के अध्यक्ष रूप में इसके प्रस्तावों को राष्ट्र के समक्ष उन्होंने पेश किया। यद्यपि मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने में एक दशक का समय लग गया पर इसकी सिफारिशों ने देश के समाजिक व राजनैतिक वातावरण में काफी दूरगामी परिवर्तन किए। कहना गलत न होगा कि मंडल कमीशन ने देश की भावी राजनीति के समीकरणांे की नींव रख दी। बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि बी0 पी0 मंडल के पिता रास बिहारी मंडल जो कि मुरहो एस्टेट के जमींदार व कांग्रेसी थे, ने ‘‘अखिल भारतीय गोप जाति महासभा’’ की स्थापना की और सर्वप्रथम माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड समिति के सामने 1917 में यादवों को प्रशासनिक सेवा में आरक्षण देने की माँग की। यद्यपि मंडल परिवार रईस किस्म का था और जब बी0पी0 मंडल का प्रवेश दरभंगा महाराज (उस वक्त दरभंगा महाराज देश के सबसे बडे़ जमींदार माने जाते थे) हाई स्कूल में कराया गया तो उनके साथ हाॅस्टल में दो रसोईये व एक खवास (नौकर) को भी भेजा गया। पर इसके बावजूद मंडल परिवार ने सदैव सामाजिक न्याय की पैरोकारी की, जिसके चलते अपने हलवाहे किराय मुसहर को इस परिवार ने पचास के दशक के उत्तरार्द्ध में यादव बहुल मधेपुरा से सांसद बनाकर भेजा। राष्ट्र के प्रति बी0पी0 मंडल के अप्रतिम योगदान पर 1 जून 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।एक अन्य प्रमुख यादव विभूति, जिनपर डाक टिकट जारी किया गया, वे हैं दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री- चै0 ब्रह्म प्रकाश। 1952 में मात्र 34 वर्ष की आयु में मुख्यमंत्री पद पर पदस्थ चैधरी ब्रह्म प्रकाश 1955 तक दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे। बाद में वे संसद हेतु निर्वाचित हुए एवं खाद्य एवं केन्द्रीय खाद्य, कृषि, सिंचाई और सहकारिता मंत्री के रूप में उल्लेखनीय कार्य किये। 1977 में उन्होंने पिछड़ी जातियों, अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों व अल्पसंख्यकों का एक राष्ट्रीय संघ बनाया ताकि समाज के इन कमजोर वर्गों की भलाई के लिए कार्य किया जा सके। राष्ट्र को अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 11 अगस्त 2001 को चैधरी ब्रह्म प्रकाश के सम्मान में स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया।

1857 की क्रान्ति में हरियाणा का नेतृत्व करने वाले रेवाड़ी के शासक यदुवंशी राव तुलाराव के नाम से भला कौन वाकिफ नहीं होगा। 1857 की क्रान्ति के दौरान राव तुलाराम ने कालपी में नाना साहब, तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई के साथ मंत्रणा की और फैसला हुआ कि अंग्रेजों को पराजित करने के लिए विदेशों से भी मदद ली जाये। एतदर्थ सबकी राय हुई कि राव तुलाराम विदेशी सहायता प्रबंध करने ईरान जायंे। राव साहब अपने मित्रों के साथ अहमदाबाद होते हुए बम्बई चले गये। वहां से वे लोग छिपकर ईरान पहुंचे। वहां के शाह ने उनका खुले दिल से स्वागत किया। वहां राव तुलाराम ने रूस के राजदूत से बातचीत की । वे काबुल के शाह से मिलना चाहते थे। एतदर्थ वे ईरान से काबुल गये जहां उनका शानदार स्वागत किया गया। काबुल के अमीर ने उन्हें सम्मान सहित वहां रखा। लेकिन रूस के साथ सम्पर्क कर विदेशी सहायता का प्रबंध किया जाता तब तक सूचना मिली कि अंग्रेजांे ने उस विद्रोह को बुरी तरह से कुचल दिया है और स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों को पकड़-पकड़कर फांसी दी जा रही है। अब राव तुलाराम का स्वास्थ्य भी इस लम्बी भागदौड के कारण बुरी तरह प्रभावित हुआ था। वे अपने प्रयास में सफल होकर कोई दूसरी तैयारी करते तब तक उनका स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हो गया था। वे काबुल में रहकर ही स्वास्थ्य लाभ कर कुछ दूसरा उपाय करने की सोचने लगे। उस समय तुरंत भारत लौटना उचित भी नहीं था। उनका काबुल में रहने का प्रबंध वहां के अमीर ने कर तो दिया पर उनका स्वास्थ्य नहीं संभला और दिन पर दिन गिरता ही गया। अंततः 2 सितम्बर 1863 को उस अप्रतिम वीर का देहंात काबुल में ही हो गया। वीर-शिरोमणि यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बडी श्रद्वा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। राव तुलाराम की वीरता एवं अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर, 2001 को उनके सम्मान में स्मारक डाक टिकट जारी किया गया।

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

एशियाड में राम सिंह यादव ने दिखाया पुरुष मैराथन में जलवा

एशियाड में राम सिंह यादव पुरुष मैराथन में 15वें स्थान पर रहे जो कि एशियन गेम्स की अंतिम एथलेटिक्स स्पर्धा थी। राम सिंह यादव ने दो घंटे 39 मिनट और 23 सेकंड का समय लिया जो गोल्ड जीतने वाले कोरिया के जी योगंजुन से 28 मिनट और 12 सेकंड अधिक था। गौरतलब है कि योंगजुन ने दो घंटे 11 मिनट और 11 सेकंड का समय लिया। जापान के किटोएका युकिहारो ने दो घंटे 12 मिनट 46 सेकंड के साथ सिल्वर मेडल जीता जबकि गत चैम्पियन कतर के शामी मुबारक :दो घंटे 12 मिनट 53 सेकंड: को ब्रॉन्ज मिला। आशा कि जानी चाहिए कि राम सिंह यादव अपना यह हौसला बरकरार रखेंगे और आगामी आयोजनों में सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करेंगें !!

एशियाड में राजेश यादव ने झटका नौकायन में रजत

ग्रामीण भारत वाकई बहुत प्रतिभाशाली है, तभी तो यहाँ के लाल विदेशों में अपना डंका बजा रहे हैं. संतकबीरनगर जनपद के राजेश यादव ने एशियाड में नौकायन में रजत पदक झटक कर यदुकुल ही नहीं पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है। राजेश यादव के परिवार और क्षेत्र के किसी भी व्यक्ति ने सपने भी नहीं सोचा था कि इक दिन राजेश चीन में भारत का तिरंगा फहराएगा। पर कभी गर्मी के दिनों में लंगोट पहन कर सरयू की लहरों पर फर्राटा भरने वाले इस खिलंदड़ नौजवान ने एशियाड मेंनौकायन में रजत पदक झटक कर यदुकुल ही नहीं पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा किया है। पुरुषों की आठ रोइंग स्पर्धा में भारतीय खिलाड़ियों ने रजत पदक जीता। रजत पदक जीतने वाली इस टीम में अनिल कुमार, गिरराज सिंह, साजी थामस, लोकेश कुमार, मंजीत सिंह, रंजीत सिंह, सतीश जोशी और जेनिल कृष्णन के साथ यदुवंश के राजेश कुमार यादव भी शामिल थे। गौरतलब है कि भारतीय दल ने 2,000 मीटर की रेस पांच मिनट 49.50 सेकंड में पूरी की।

उत्तर प्रदेश में संतकबीर जिले के धनघटा थाना क्षेत्र के कंचनपुर गांव निवासी स्वर्गीय महातम यादव के पांच बेटों में राजेश कुमार यादव तीसरे नंबर का है। मांझा की माटी में पले, पढ़े राजेश यादव ने प्राथमिक विद्यालय गायघाट में प्राथमिक शिक्षा हासिल की। उसके बाद जय नारायन इंटर कालेज तिघरा मौर्य में कक्षा छह से लेकर इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। बीए में पढ़ ही रहा था कि वर्ष २००४ में उसका चयन आर्मी में हो गया। गार्ड रेजीमेंट सेंटर नागपुर में उसकी टे्रनिंग हुई। टे्रनिंग के दौरान पूना से रोइंग की टीम आई थी, उसी में उसका चयन हो गया। २००६ में कोलकाता में स्प्रिंट नेशनल चैंपियनशिप में उसने पहली बार दो सिल्वर मेडल जीते। २००७ में ओपेन नेशनल चैंपियनशिप भोपाल में भी दो सिल्वर मेडल हासिल किया। उसी वर्ष नेशनल गेम असम में दो कांस्य पदक जीता। वर्ष ०९ में ओपेन नेशनल चैंपियनशिप पूना में एक कांस्य पदक प्राप्त किया। वर्ष ०९ में एशियन रोइंग चैंपियनशिप ताईवान में कांस्य पदक प्राप्त कर अपने दमखम और तकनीक का प्रदर्शन किया।

इस बार चीन में आयोजित १६वें एशियाड खेल में नौकायन में राजेश कुमार यादव को मौका मिला। इस स्पर्धा में छह देश क्रमश: जापान, भारत, हांगकांग, इंडोनेशिया, उत्तर कोरिया और थाईलैंड की टीमों ने हिस्सा लिया था। राजेश यादव के पिता महातम यादव चर्चित पहलवान थे। उनकी वर्ष २००५ के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में बूथ पर गोली मार कर हत्या हो गई थी। राजेश के बड़े भाई जय प्रकाश ग्राम प्रधान हैं और दूसरे नंबर के भाई राकेश कुमार आर्मी में है। चौथे नंबर के भाई राम प्रवेश बीए में तथा पांचवें नंबर का भाई उमेश यादव ११वीं में पढ़ रहा है। चाचा ओंकार यादव ने बताया कि जैसे ही फोन पर सूचना आई कि राजेश ने एशियाड में नौकायन प्रतियोगिता में रजत पदक जीता है उनका सीना चौड़ा हो गया। वह जहां भतीजे की सफलता पर काफी उत्साहित थे वहीं राजेश की मां जनकराजी देवी, पत्नी सीमा खुशी का इजहार करते नहीं थक रही थीं।

राजेश यादव को इस शानदार उपलब्धि पर यदुकुल की तरफ से ढेरों बधाइयाँ !!

एशियाड खेल में पाल नौकायान में रजत पदक विजेता : शेखर यादव

एशियाड में जहाँ भारत का प्रदर्शन पहले की अपेक्षा बेहतर रहा वहीँ तमाम नए चेहरे सामने आए. इनमें तमाम यदुवंशी प्रतिभाएं भी हैं. एशियाड खेल में पाल नौकायान में रजत पदक जीतकर अलवर जिले के शेखर सिंह यादव ने यदुकुल का मान बढ़ाया है। अलवर जिले के कोटकासिम के साणौदा निवासी शेखर सिंह यादव वर्तमान में भारतीय नेवी पनडुब्बी पैटी ऑफिसर के पद पर कार्यरत हैं। शेखर यादव, पाल नौकायान (सैली) टीम में सदस्य थे, जिसको 20 नवम्बर को सिल्वर मैडल मिला।

गौरतलब है कि शेखर सिंह यादव इक मध्यमवर्गीय परिवार से हैं। इनके परिवार में 10 भाई-बहन हैं। इनके पिताजी मुंशीराम यादव व माताजी का नाम शांति देवी है। शेखर ने अपनी शिक्षा बीए तक अलवर के बाबू शोभाराम कला महाविद्यालय से की। करीब 20 साल की उम्र में शेखर का नेवी में चयन हो गया। 1995 में नेवी में भर्ती होने के बाद पहली बार अरावली की पहाडियों से निकल कर शेखर ने समन्दर की लहरों पर पांव रखा। नौकायन मे रूचि होने के कारण नेवी में रहते चार-पांच वर्ष तक नौकायन का प्रशिक्षण प्राप्त किया। इसके बाद प्रोफेशनल प्रशिक्षण लिया। 2006 में नेवी के आईएनडब्ल्यू टीसी में सेलिंग क्लब में प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद वर्ष 2008 में चेन्नई में पहली बार नेशनल मेडल जीता। इसके बाद शेखर ने पाल नौकायन में कई और अंतरराष्ट्रीय मेडल जीते। शेखर कहते हैं कि एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्ड को फोकस किया था। मैच रेस इवेन्ट में प्रथम स्थान प्राप्त करने और टॉप फोर में आने के बाद अंत के तीन मैचों में लगातार जीत हासिल करने पर रजत पदक मिला।

इस शानदार उपलब्धि पर शेखर यादव को यदुकुल की तरफ से ढेरों बधाइयाँ !!

विकास यादव ने दिलाया एशियाई खेलों में 12 साल बाद भारत को मुक्केबाजी का स्वर्ण पदक

चीन के ग्वांग्झू में संपन्न एशियाई खेलों में यदुवंशियों ने भी शानदार प्रदर्शन किया। एशियाई खेलों में दो यदुवंशी मुक्केबाजों ने अपना जौहर दिखाया. छोटलाल यादव (56 किग्रा), विकास कृष्णन यादव (60 किग्रा). छोटेलाल यादव दक्षिण एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता और मौजूदा राष्ट्रीय चैंपियन हैं. 25 नवम्बर, 2010 को विकास कृष्ण यादव ने मुक्केबाजी के 60किलोग्राम वर्ग में पहला स्वर्ण हासिल किया।18 वर्षीय विकास यादव इसी वर्ष अगस्त में सिंगापुर में आयोजित विश्व युवा ओलम्पिक में कांस्य पदक जीत चुके हैं। विकास कृष्णन यादव वैश्य कॉलेज भिवानी, हरियाणा के प्रथम वर्ष के छात्र हैं. गौरतलब है कि युवा मुक्केबाज विकास कृष्णन यादव ने एशियाई खेलों में 12 साल बाद भारत को मुक्केबाजी का स्वर्ण पदक दिलाया। भारत ने 1998 में डिंको सिंह के स्वर्ण पदक के बाद से एशियाई खेलों में सोने का तमगा नहीं जीता था। आखिर यह सिलसिला हरियाणा के कम मशहूर मुक्केबाज विकास ने तोड़ा। अठारह वर्षीय विकास ने पुरुषों के 60 किग्रा (लाइटवेट) भार वर्ग में पिछले चैंपियन चीनी मुक्केबाजी क्विंग हू को 5-4 से हराया। विश्व युवा चैंपियन और युवा ओलंपिक के कांस्य पदक विजेता भारतीय मुक्केबाज ने रक्षात्मक रवैया अपनाया। तीन मिनट के पहले राउंड के बाद स्कोर 1-1 से बराबरी पर था। हू दूसरे राउंड में तनाव में दिखे और उन्होंने विकास को धक्का दे दिया। जिसके कारण चीनी मुक्केबाज को चेतावनी दी गई और उन्हें दो महत्वपूर्ण अंक गंवाने पड़े।आखिर में यही चेतावनी निर्णायक साबित हुई। दोनों मुक्केबाज तीसरे और अंतिम राउंड में केवल एक-एक अंक बना पाए, जो विकास के लिए डिंको की उपलब्धि की बराबरी करने के लिए पर्याप्त था।

विकास कृष्णन यादव से एशियाई खेलों के फाइनल में करीब से हारने से भड़के चीनी मुक्केबाज क्विंग हू ने भारतीय मुक्केबाज विकास कृष्ण यादव को अच्छा अभिनेता ही करार दे दिया। इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए विकास कृष्णन यादव ने कहा कि इस बाउट के दौरान हू उन्हें बेल्ट के नीचे लगातार पंच मारते रहे। गत चैंपियन हू ने कहा कि मैं पहले राउंड में तीन अंक से आगे था और मुझे फाउल की सजा मिली, जो मैंने किया ही नहीं था। मैंने बेल्ट के नीचे हिट किया था, लेकिन यह इससे नीचे नहीं गया था। रेफरी ने उसे दो अंक दे दिए और इसके बाद मेरा प्रतिद्वंद्वी एक अच्छा अभिनेता बन गया। मुझे प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी ने नहीं हराया बल्कि मुझे रेफरी ने शिकस्त दी। हू ने कहा कि अंतिम राउंड में मेरा प्रतिद्वंद्वी बिलकुल फाइट नहीं कर रहा था, रेफरी को उसे चेतावनी देनी चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। हू ने कहा, लेकिन मैं अपने प्रदर्शन से खुश हूं और मेरी नजर में मैं चैंपियन हूं। रेफरी के फैसले का विरोध करना बेकार है क्योंकि मैं अपने प्रदर्शन से खुश हूं। विकास कृष्णन यादव से जब हू के आरोपों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं मुक्केबाज हूं, अभिनेता नहीं। ....फ़िलहाल भारतीयों की जीत चीन को भला कैसे पच सकती है, सो अनर्गल प्रलाप तो वो करेंगे ही। हम तो इतना ही कहेंगे कि भारतीयों कि जीत प्रभावी है और यदुवंशी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

विकास कृष्णन यादव को इस शानदार उपलब्धि पर यदुकुल की तरफ से ढेरों बधाइयाँ !!

सोमवार, 29 नवंबर 2010

विदेशी राजनीति में भी छाये यदुवंशी

भारत वर्ष में यादवों के राजनैतिक उत्कर्ष के तमाम उदाहरण मिलते हैं, पर अब विदेशों में भी तमाम उदाहरण मिलने लगे हैं। नेपाल की जनता ने अपने 240 वर्ष पुराने राजतंत्र को उखाड़कर लोकतांत्रिक पद्धति अपनाई है और डाॅ0 रामबरन यादव को अपना पहला राष्ट्रपति चुना है। डाॅ0 रामबरन यादव ने 1981 में मेडिकल कालेज कलकत्ता से एम0बी0बी0एस0 की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद 1985 में एम0डी0 (फिजीशियन) की डिग्री चंडीगढ़ से प्राप्त की। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लगभग आठ साल तक चण्डीगढ़ में रहकर ही अपनी मैडिकल प्रैक्टिस की। यह भारत और विशेषकर यहांँ के यादवों के लिए गौरव का विषय है।
इससे पूर्व विदेशों में त्रिनिडाड व टोबैगो के पूर्व प्रधानमंत्री श्री वासुदेव पांडे (उनके पूर्वज पानी पिलाते थे, अतः पानी पांडे कहलाने से पांडे सरनेम आया) और मारीशस के पूर्व प्रधानमंत्री अनिरूद्ध जगन्नाथ को भी यादव मूल का माना जाता है। इतिहास गवाह है कि नेपाल में प्रथम राजनेता या राजा यदुवंशी भुक्तिमान गोप रहे हैं। उसी परंपरा में नेपाल के उपप्रधानमंत्री रहे उपेन्द्र यादव, शिक्षा मंत्री रेणु कुमारी, इंग्लैंड में नेपाल के राजदूत राम स्वारथ राय और नेपाल के संसद की डिप्टी स्पीकर चन्द्र लेखा यादव भी यादवों की ही वंशज हैं।

बुधवार, 24 नवंबर 2010

राजनीति में यदुवंशी: अब तक 9 यादव मुख्यमंत्री

लोकतंत्र में राजनीति सत्ता को निर्धारित करती है। राजनीति में सशक्त भागीदारी ही अंतोगत्वा सत्ता में परिणिति होती है। आजादी पश्चात से ही यदुवंशियों ने राजनीति में प्रखर भूमिका निभाना आरम्भ कर दिया। भारत के संविधान निर्माण हेतु गठित संविधान सभा के सदस्य रूप में लक्ष्मी शंकर यादव (उ0प्र0) और भूपेन्द्र नारायण मंडल (बिहार) ने अपनी भूमिका का निर्वाह किया। लक्ष्मी शंकर यादव बाद में उत्तर प्रदेश सरकार में कैबेनेट मंत्री एवं उ0प्र0 कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे। संयुक्त प्रांत (अब उ0प्र0) के प्रथम यादव विधायक ठाकुर भारत सिंह यादवाचार्य (1937) रहे। भारत में यादवों का राजनीति में पदार्पण आजादी के बाद ही आरम्भ हो चुका था, जब शेर-ए-दिल्ली एवं मुगले-आजम के रूप में मशहूर चै0 ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के प्रथम मुख्यमंत्री (1952-1956) बने थे। तब से अब तक भारत के विभिन्न राज्यों में 9 यादव मुख्यमंत्री पद पर आसीन हो चुके हैं। हरियाणा में 1857 की क्रान्ति का नेतृत्व करने वाले राव तुलाराम के वंशज राव वीरेन्द्र सिंह हरियाणा के द्वितीय मुख्यमंत्री (24 मार्च 1967-2 नवंबर 1967) रहे। उत्तर प्रदेश में राम नरेश यादव (23 जून 1977-27 फरवरी 1979) व मुलायम सिंह यादव (5 दिसम्बर 1989-24 जून 1991, 4 दिसम्बर 1993-3 जून 1995, 29 अगस्त 2003-13 मई 2007), बिहार में बी0पी0मण्डल (1 फरवरी 1968-02 मार्च 1968), दरोगा प्रसाद राय (16 फरवरी 1970-22 दिसम्बर 1970), लालू प्रसाद यादव (10 मार्च 1990-03 मार्च 1995 एवं 4 अप्रैल 1995-25 जुलाई 1997), राबड़ी देवी (25 जुलाई 1997-11 फरवरी 1999, 9 मार्च 1999-1 मार्च 2000 एवं 11 मार्च 2000-6 मार्च 2005) एवं मध्य प्रदेश में बाबू लाल गौर (23 अगस्त 2004-29 नवंबर 2005) मुख्यमंत्री पद को सुशोभित कर यादव समाज को गौरवान्वित किया। प्रथम महिला यादव मुख्यमंत्री होने का गौरव राबड़ी देवी (बिहार) को प्राप्त है। सुभाष यादव मध्य प्रदेश के तो सिद्धरमैया कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री रहे। यादव राज्यपालों में गुजरात में महिपाल शास्त्री (2 मई 1990- 21 दिसंबर 1990) एवं हिमाचल प्रदेश व राजस्थान में बलिराम भगत (क्रमशः 11 फरवरी 1993-29 जून 1993 व 20 जून 1993-1 मई 1998) रहे
प्रान्तीय राजनीति के साथ-साथ यदुवंशियों ने केन्द्रीय राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अंतरिम लोकसभा (1950) के सदस्य रूप में बलिराम भगत (बिहार) चुने गए तो प्रथम लोकसभा में चै० बदन सिंह (कांग्रेस, बदायूं, उ0प्र0), चै० रघुबीर सिंह (कांग्रेस, मैनपुरी, उ0प्र0), बलिराम भगत (कांगे्रस, बिहार) व जयलाल मंडल (कांगे्रस, बिहार) निर्वाचित हुए। यदुवंश से बलिराम भगत को लोकसभा अध्यक्ष बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो श्यामलाल यादव राज्यसभा के उपसभापति रहे। चै0 ब्रह्म प्रकाश, राव वीरेन्द्र सिंह, देवनंदन प्रसाद यादव, चन्द्रजीत यादव, श्याम लाल यादव, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, हुकुमदेव नारायण यादव, बलराम सिंह यादव, बलिराम भगत, कर्नल राव राम सिंह, राम लखन सिंह यादव, सुरेश कलमाड़ी, सतपाल सिंह यादव, कांती सिंह, देवेन्द्र प्रसाद यादव, जय प्रकाश यादव, राव इन्द्रजीत सिंह इत्यादि तमाम यदुवंशी राजनेताओं ने केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का समय-समय पर मान बढ़ाया है। वर्तमान में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में एक मात्र यदुवंशी अरूण यादव, भारी उद्योग और सार्वजनिक मंत्रालय के राज्यमंत्री हैं। लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव एवं शरद यादव क्रमशः राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी तथा जनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तो मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में सपा अध्यक्ष का पद सम्भाले हुए हैं।




वर्तमान 15वीं लोकसभा में कुल 21 यादव सांसद हैं। यहाँ लिखना मुनासिब होगा कि 15वीं लोकसभा चुनाव के बाद राजनीति में यादवों की पकड़ कमजोर हुई है और यदि वक्त रहते निष्पक्षता से इसका उत्तर नहीं ढूंढ़ा गया तो आगामी पीढ़ियों को एक गलत संदेश जायेगा।

शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

पराक्रमी एवं स्वतंत्रता प्रिय यदुवंशी

किसी भी राष्ट्र के उत्थान में विभिन्न जाति समुदायों का महत्वपूर्ण योगदान होता है। जाति समाज की एक महत्वपूर्ण इकाई है। समाज में वही जाति प्रमुख स्थान बना पाती है जिसका न सिर्फ अपना गौरवशाली इतिहास हो बल्कि भविष्य की चुनौतियों का सामना करने का सत्साहस भी हो। यही कारण है कि तमाम जातियाँ कभी न कभी संक्रमण काल से गुजरती हैं। जातीय सर्वोच्चता एवं जातिवाद जैसे तत्व कहीं न कहीं समाज को प्रभावित करते हैं। भगवान श्रीकृष्ण के वंशज कहे जाने वाले यादवों के बारे में पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रन्थों में विस्तार से जानकारी मिलती है। श्रीमद्भागवत (9/23/19) में कहा गया है कि-

यदोर्वंशः नरः श्रुत्वा सर्व पापैः प्रमुच्यते।
यत्रावतीर्ण कृष्णाख्यं परं ब्रह्म निराकृति।।


यादव आरम्भ से ही पराक्रमी एवं स्वतंत्रता प्रिय जाति रही है। यूरोपीय वंश में जो स्थान ग्रीक व रोमन लोगों का रहा है, वही भारतीय इतिहास में यादवों का है। आजादी के आन्दोलन से लेकर आजादी पश्चात तक के सैन्य व असैन्य युद्धों में यादवों ने अपने शौर्य की गाथा रची और उनमें से कई तो मातृभूमि की बलिवेदी पर शहीद हो गये। ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरूद्ध सर्वप्रथम 1739 में कट्टलापुरम् (तमिलनाडु) के यादव वीरन् अलगमुत्थू कोण ने विद्रोह का झण्डा उठाया और प्रथम स्वतंत्रता सेनानी के गौरव के साथ वीरगति को प्राप्त हुए। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में यादवों ने प्रमुख भूमिका निभाई। बिहार में कुँवर सिंह की सेना का नेतृत्व रणजीत सिंह यादव ने किया। रेवाड़ी (हरियाणा) के राव रामलाल ने 10 मई 1857 को दिल्ली पर धावा बोलने वाले क्रान्तिकारियों का नेतृत्व किया एवं लाल किले के किलेदार मिस्टर डगलस को गोली मारकर क्रान्तिकारियों व बहादुर शाह जफर के मध्य सम्पर्क सूत्र की भूमिका निभाई। 1857 की क्रांति की चिंगारी प्रस्फुटित होने के साथ ही रेवाड़ी के राजा राव तुलाराम भी बिना कोई समय गंवाए तुरन्त हरकत में आ गये। उन्होंने रेवाड़ी में अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान कर्मचारियों को बेदखल कर स्थानीय प्रशासन अपने नियन्त्रण में ले लिया तथा दिल्ली के शहंशाह बहादुर शाह ज़फर के आदेश से अपने शासन की उद्घोषणा कर दी। 18 नवम्बर 1857 को राव तुलाराम ने नारनौर (हरियाणा) में जनरल गेरार्ड और उसकी सेना को जमकर टक्कर दी। इसी युद्ध के दौरान राव कृष्ण गोपाल ने गेरार्ड के हाथी पर अपने घोड़े से आक्रमण कर गेरार्ड का सिर तलवार से काटकर अलग कर दिया। अंग्रेजों ने जब स्वतंत्रता आन्दोलन को कुचलने का प्रयास किया तो राव तुलाराम ने रूस आदि देशों की मदद लेकर आन्दोलन को गति प्रदान की। अंततः 2 सितम्बर 1863 को इस अप्रतिम वीर का काबुल में देहंात हो गया। वीर-शिरोमणि यदुवंशी राव तुलाराम के काबुल में देहान्त के बाद वहीं उनकी समाधि बनी जिस पर आज भी काबुल जाने वाले भारतीय यात्री बडी श्रद्वा से सिर झुकाते हैं और उनके प्रति आदर व्यक्त करते हैं। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में राव तुलाराम के अप्रतिम योगदान के मद्देनजर 23 सितम्बर 2001 को उन पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया।

चौरी-चौरा काण्ड से भला कौन अनजान होगा। इस काण्ड के बाद ही महात्मा गाँधी ने असहयोग आन्दोलन वापस लेने की घोषणा की थी। कम ही लोग जानते होंगे कि अंग्रेजी जुल्म से आजिज आकर गोरखपुर में चैरी-चैरा थाने में आग लगाने वालों का नेतृत्व भगवान यादव ने किया था। इसी प्रकार भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान गाजीपुर के थाना सादात के पास स्थित मालगोदाम से अनाज छीनकर गरीबों में बांँटने वाले दल का नेतृत्व करने वाले अलगू यादव अंग्रेज दरोगा की गोलियों के शिकार हुये और बाद में उस दरोगा को घोड़े से गिराकर बद्री यादव, बदन सिंह इत्यादि यादवों ने मार गिराया। नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने जब ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा‘ का नारा दिया तो तमाम पराक्रमी यादव उनकी आई0एन0एस0 सेना में शामिल होने के लिए तत्पर हो उठे। रेवाड़ी के राव तेज सिंह तो नेताजी के दाहिने हाथ रहे और 28 अंग्रेजों को मात्र अपनी कुल्हाड़ी से मारकर यादवी पराक्रम का परिचय दिया। आई0एन0ए0 का सर्वोच्च सैनिक सम्मान ‘शहीद-ए-भारत‘ नायक मौलड़ सिंह यादव को हरि सिंह यादव को ‘शेर-ए-हिन्द‘ सम्मान और कर्नल राम स्वरूप यादव को ‘सरदार-ए-जंग‘ सम्मान से सम्मानित किया गया। नेता जी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे कैप्टन उदय सिंह आजादी पश्चात दिल्ली में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर बने एवं कई बार गणतंत्र परेड में पुलिस बल का नेतृत्व किया।

आजादी के बाद का इतिहास भी यादव सैन्य अधिकारियों तथा सैनिकों की वीरता एवं शहादत से भरा पड़ा है। फिर चाहे वह सन् 1947-48 का कबाइली युद्ध, 1955 का गोवा मुक्ति युद्ध, 1962 का भारत-चीन युद्ध हो अथवा 1965 व 1971 का भारत-पाक युद्ध। भारत-चीन युद्ध के दौरान 18,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित चिशूल की रक्षा में तैनात कुमायँू रेजीमेन्ट के मेजर शैतान सिंह यादव ने चीनियों के छक्के छुडा़ दिये। गौरतलब है कि चिशूल के युद्व में 114 यादव जवान शहीद हुए थे। चिशूल की हवाई पट्टी के पास एक द्वार पर लिखा शब्द ‘वीर अहीर‘ यादवों के गौरव में वृद्धि करता है। 1971 के युद्ध में प्रथम शहीद बी0एस0एफ0 कमाण्डर सुखबीर सिंह यादव की वीरता को कौन भुला पायेगा। मातादीन यादव (जार्ज क्रास मेडल), नामदेव यादव (विक्टोरिया क्रास विजेता), राव उमराव सिंह (द्वितीय विश्व युद्ध में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु विक्टोरिया क्रास), हवलदार सिंह यादव (विक्टोरिया क्रास विजेता), प्राणसुख यादव (आंग्ल सिख युद्ध में सैन्य कमाण्डर), मेजर शैतान सिंह यादव (मरणोपरान्त परमवीर चक्र), कैप्टन राजकुमार यादव (वीर चक्र, 1962 का युद्ध), बभ्रुबाहन यादव (महावीर चक्र, 1971 का युद्ध), ब्रिगेडियर राय सिंह यादव (महावीर चक्र), चमन सिंह यादव (महावीर चक्र विजेता), ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव (1999 में कारगिल युद्ध में उत्कृष्टम प्रदर्शन के चलते सबसे कम उम्र में 19 वर्ष की आयु में सर्वोच्च सैन्य पदक परमवीर चक्र विजेता) जैसे न जाने कितने यादव जंाबांजों की सूची शौर्य-पराक्रम से भरी पड़ी है। कारगिल युद्ध के दौरान अकेले 91 यादव जवान शहादत को प्राप्त हुए। कारगिल युद्ध के दौरान ले० जनरल किशनपाल सिंह च्टैडए टैड ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गाजियाबाद के कोतवाल रहे ध्रुवलाल यादव ने कुख्यात आतंकी मसूद अजगर को अक्तूम्बर 1994 में सहारनपुर से गिरफ्तार कर कई अमेरिकी व ब्रिटिश बंधकों को मुक्त कराया था। उन्हें तीन बार राष्ट्रपति पुरस्कार (एक बार मरणोपरान्त) मिला। ब्रिगेडियर वीरेन्द्र सिंह यादव ने नामीबिया में संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ग्राम सभा से राज्य सभा तक का सफर करने वाले पूर्व सांसद चैधरी हरमोहन सिंह यादव को 1984 के दंगों में सिखों की हिफाजत हेतु असैनिक क्षेत्र के सम्मान ‘शौर्य चक्र‘ (1991) से सम्मानित किया जा चुका है। ब्रजेश सिंह, फजुलर्रहमान व मुन्ना बजरंगी जैसे कुख्यात अपराधियों को गिरफ्तार करने का श्रेय दिल्ली पुलिस के सहायक पुलिस आयुक्त संजीव यादव को प्राप्त है। संसद हमले में मरणोपरान्त अशोक चक्र से नवाजे गये जगदीश प्रसाद यादव, विजय बहादुर सिंह यादव अक्षरधाम मंदिर पर हमले के दौरान आपरेशन फ्लश आउट के कार्यकारी प्रधान कमाण्डो सुरेश यादव तो मुंबई हमले के दौरान आर0पी0एफ0 के जिल्लू यादव तथा होटल ताज आपरेशन के जाँबाज गौरी शंकर यादव की वीरता यदुवंशियों का सीना गर्व से चैड़ा कर देती है। ऐसे ही न जाने कितने यदुवंशी रोज देश की आन-बान के लिए मर मिटने को तत्पर होते हैं और वक्त के साथ मील का पत्थर बनकर आगामी पीढ़ियों हेतु प्रेरणा स्रोत का कार्य करते हैं।

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

शिक्षक और कवि : डॉ. राजीव ‘राज’

नामः डॉ. राजीव ‘राज’
पिता का नामः श्री प्रेम बाबू यादव
माता का नामः श्रीमती शकुन्तला यादव
शैक्षिक योग्यताः बी.एस-सी., एम.एस-सी.,पी-एच.डी. (रसायन) एम.ए. (हिन्दी साहित्य एवं संस्कृत), साहित्य रत्न प्रयाग विश्वविद्यालय, बी.एड.
सम्प्रतिः शिक्षक, शिव नारायण इण्टर कॉलेज, इटावा
पत्र व्यवहार का पताः 239, प्रेम बिहार,
विजय नगर, इटावा पिन- 206001
ई-मेलः dr_rajeevraj@yahoo.com
ब्लागः vednakephool.blogspot.com

रो रहा बचपन मैं कैसे मुस्कराऊँ


अर्घ गंगाजल का चाहे देवता,
आँख के आंसू न कोई देखता,
अर्थपूरित हो गयी हैं अर्चनाएं
अथ प्रदूषित हो गयीं हैं सर्जनाएं,
घंटियों में भी नहीं संगीत है
मंदिरों ने भी बदल दी नीत है,
पीर अंतर में लिए जाऊं कहाँ?
किसको सुनाऊँ?
वेदना के फूल मैं किस पर चढाऊँ?

दर्द अब केवल नहीं कश्मीर है,
भारती के अंग अंग में पीर है
मुम्बई, गुजरात देखो रक्तरंजित,
जम्मू,काशी घाट भी लगता प्रकम्पित
बम से थर्राई है जब-जब राजधानी,
अंजुरी भर ढूढता जल स्वाभिमानी
आह माँ की भूल कैसे
मैं खुशी के गीत गाऊँ?
राष्ट्र ऋण का बोध मैं कैसे भुलाऊँ?
वेदना के फूल मैं किस पर चढाऊँ?

भोर पर छाई निशा की कालिमा,
भूख ने बचपन की छीनी लालिमा
काश जो करते कलम की नोंक पैनी,
उन कारों में है हथौड़ा और छैनी
शीश पर अपने गरीबी ढो रहे हैं,
भोजनालय में पतीली धो रहे हैं
जो खिलौना चाँद का मांगे
कहाँ वो कृष्ण पाऊँ?
रो रहा बचपन मैं कैसे मुस्कराऊँ?
वेदना के फूल मैं किस पर चढाऊँ?

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

साहित्य व पत्रकारिता में हाथ आजमाते : रामजी यादव

13 अगस्त 1963 को वाराणसी में जन्मे रामजी यादव अपनी शिक्षा-दीक्षा पूरी करने के बाद राजनैतिक संगठनों के साथ काम करने लगे। पत्रकारिता का चस्का लगा, दिल्ली आ गये और डाक्यूमेंट्री फिल्मों के निर्माण में जुट गये। 'समय की शिला पे', 'एक औरत की अपनी यादें', 'सफ़रनामा', 'गाँव का आदमी', 'पैर अभी थके नहीं', 'द कास्ट मैटर्स', 'पानीवालियाँ', 'खिड़कियाँ हैं, बैल चाहिए' जैसी उल्लेखनीय वृत्तचित्रों का निर्माण किया। 60 से अधिक असंपादित डाक्यूमेंट्रियाँ बनाई हैं, उसे पूरा करना शेष है। इन दिनों दैनिक भास्कर, नई दुनिया, अमर उजाला जैसे अखबारों के लिए स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। इनकी साहित्यिक यात्रा भी लम्बी है। बहुत सी कहानियाँ कथादेश, हंस, नया ज्ञानोदय जैसी महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। 'अथकथा-इतिकथा' नाम का उपन्यास भी पूरा कर लिया है। कविताएँ भी लगातर लिख रहे हैं। आलोचना भी हाथ आजमा चुके हैं।प्रस्तुत है रामजी यादव की एक कविता-

'प्रेम'

अक्सर मैं सोचता हूँ क्या ज़रूरत थी
महिवाल को दूर देश से आने की चिनाब की ओर

फरहाद पगले को तस्वीर बनाने को किसने कहा था
शीरीं का
और उसकी आँखों में इस कदर डूब जाने का
कि निकल न सका जीवन भर

आशनाई तो चंद्रमोहन विश्नोई भी करते हैं
पहले चाँद मोहम्मद बन जाते हैं फिर गायब होकर
वही बन जाते है जो थे
और फिजाएँ यूँ ही बदहवास
बदलती रहती हैं रोज़-ब-रोज़

प्रेम एक ऐसा पारदर्शी आकाश है
कि सिर कटाओ तो रंगीन बना देता है
हवा, पानी, धरती, समाज, देश, घर, राजनीति
अर्थव्यवस्था, जंगल, पहाड़, नदी, समुन्दर और भाषा को
नहीं तो संगीन बनते देर नहीं लगती दुनिया
प्रेम में एक बूँद चालाक होकर तो देख लो!

प्रेम तिरोहित होने का नाम है
गोया सभ्यता की ओर बढ़ाते लोग पत्थरों में
बदल गए हों
मनुष्यता के सबक भूलते चले गए हों
याद नहीं रहता सौन्दर्य, राग बेसुरे हुए जाते हों
भंग होती जाती है एकाग्रता
और जीवन में आती-जाती है अलाय-बलाय सामग्री
समझ में नहीं आता कुछ कि क्या मतलब है दुनिया का
इतने अकेले और अलफनंग होते हैं अपने आप में लोग

पहले विचार मरते हैं
फिर वियाग्रा चली आती है दिमाग में
और लोग क्या समझते हैं?
बिंदास होकर कंडोम बोलने से वे
सच के करीब पहुँच जाएँगे?

मैं जानता हूँ वे बहुत दूर
बहुत देर बाद देखेंगे अपने आपको भी
एकदम निराश और कुछ न छोड़ पाने की कुंठा
लिए
तरसते हुए जीवन को पल-पल
न लौटना मुमकिन, न मौत के सामने ठट्ठा
मारने की हिम्मत
इतना कमज़र्फ़, इतना कमज़ोर, इतना लाचार
बनाती हैं सभ्यताएँ

दोस्त! केवल प्रेम खड़ा है ऐसी हर सभ्यता के
खिलाफ़

क्या तुमने बासी रोटी को कुतर-कुतर
खाया है प्रेम में
पानी को आहलाद की तरह पीया है
यूँ हाथ फड़फड़ाकर उड़ जाने के सपने देखे हैं
पहाड़ को दो टुकड़ों में काट देने की हिम्मत
पाई है अपने अंदर
क्या किसी की दो आँखें चमकती हैं तुम्हारी आत्मा में
अगर महरूम हो तुम इन सबसे तो देखना ध्यान से
कहीं तुम्हारे भीतर कोई तालिबानी तो नहीं बैठा है
तुम्हें केसरिया रंग तो नहीं पसंद आता
तुम पीछे तो नहीं भाग रहे शाश्‍वतता के नाम पर
तुम देश को माँ समझते हुए पितृसत्ता का झंडा तो
नहीं उठाए हुए हो

एक बार सोचना चुपचाप
कि प्रेम ही क्यों तोड़ता दीवारें सारी
जाति की, धर्म की, अमीरी की, गरीबी की, रंग की
रूप की, उम्र की, जन्म की, देश की
मटियामेट क्यों कर देता है प्रेम ही हर बार

तुम दाम्पत्य में प्रेम का गेमेक्सीन छिड़कते हो
और सोचते हो कि ठीक हो गया सबकुछ
मर गए नफरत के कीटाणु
लेकिन तुम हद से हद एक चौकन्ने पति हो
सकते हो
ध्यान से देखो
अभी भी तुम्हारी पत्नी को विश्वास नहीं है तुम पर

एक दिन थमाओ उसे एक गिलास पानी
दबाओ उसके पाँव और सहलाओ सिर
और खोल दो जुल्फ़ें
महसूस करो कि तुम सदियों से जानते हो उसे
लेकिन एक संवाद न हुआ अब तक

ठीक है अभी पूछ लो हाल-चाल उसका
हवा के रंग पूछो उससे और क्या वह जानती है
उड़ान के बारे में

पोछा लगाओ ठीक से
ध्यान रखना कोने-अंतरे का
बेसिन में पड़े बर्तन धो दो
यूँ नाक-भौं मत सिकोड़ो
इनमें से ज्यादातर तुम्हारे ही जूठे हैं
और सब्जी ठीक से काटो
भात कच्चे ही मत उतार देना
दूध में नमक न पड़ जाय कहीं

मैं जानता तुम्हारा प्रेम पहुँचेगा किस मुकाम पर
हो सकता है तुम नकली मर्यादाओं के पत्थर ढोते
पुरुष न रह जाओ
हो सकता है वह डरी हुई स्त्री न रहे
प्रेम में इंसान हो जाती है स्त्री

प्रेम में निर्भय होता है समाज
निर्भय होती हैं लड़कियाँ
एक सम्पत्तिशील और बर्बर समाज
भर जाता है रचनात्मकता से
प्रेम में गोल नहीं होतीं आँखें
जैसे छिछोरों और दृश्य रतिकों की होती हैं
प्रेम में रस भर आता है उनमें
और वे भरोसे से दीप्त हो उठती हैं

प्रेम एक मिट्टी है जैसे वह होती है
चाक पर रखे जाने के ठीक पहले।

साभार : हिंद-युग्म

सोमवार, 27 सितंबर 2010

मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव

भोपाल शहर की कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव को चिकित्सा के क्षेत्र में विशेष ढंग से काम करने और गरीब कैंसर मरीजों को स्वयं चिकित्सा खर्च वहन करते हुए इलाज और सेवा देने के लिए जाना जाता है. वे शायद इस मुहावरे को चरितार्थ करती नजर आती हैं की डाक्टर भगवन का ही दूसरा रूप है. वस्तुत: बचपन में ही सुनीता यादव ने अपने दादाजी को कैंसर का इलाज नहीं मिल पाने के कारण खोया था। इसी बीमारी के चलते अपनी नानी को भी खोया और तभी से तय कर लिया कि बड़े होकर कैंसर सर्जन ही बनना है। 1985 में ग्वालियर के गजराराजा मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद 1994 में प्रैक्टिस शुरू की और 1995 से भोपाल में प्रैक्टिस शुरू कर दी। कैंसर सर्जन बनने के बाद कई गरीब कैंसर मरीजों को कम से कम खर्च पर इलाज दिया। सुनीता यादव 80 हजार रुपए में होने वाली सर्जरी को फिलहाल पांच से छह हजार रुपए में कर रही हैं। डॉ. यादव के पास अक्सर महीने में ऐसे दो-तीन केस आते हैं जिनके इलाज का खर्च माफ करना पड़ता है। डा0 सुनीता यादव इंडियन रेडक्रास सोसायटी में भी वे बतौर कंसल्टेंट अपनी सेवाएं दे रही हैं। वे कहती हैं, कैंसर पीड़ित महिलाओं को देखकर दुख होता है क्योंकि वे पारिवारिक जिम्मेदारियों ने इतनी उलझी रहती हैं कि चौथी स्टेज में इलाज के लिए आती हैं। महिलाओं को सलाह है कि वे अपने स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें और प्रारंभिक लक्षण दिखने पर ही इलाज के लिए आएं।

डा0 सुनीता यादव को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए तमाम संस्थाओं द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है. 21 मई, 2009 को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए उपराष्ट्रपति मोहम्मद हमीद अंसारी द्वारा नई दिल्ली स्थित आंध्र प्रदेश भवन में सम्मानित किया जाएगा। उन्हें यह सम्मान राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच के 82 वें शिखर सम्मेलन में दिया गया , जिसमें चिकित्सा, उद्योग, शिक्षा, समाज सेवा और न्याय के लिए अनुकरणीय कार्य करने वाले व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है।

गौरतलब है कि इस सम्मान के लिए नामांकित होने पर पूर्व लोकसभा अध्यक्ष बलिराम भगत ने स्वयं उनका इंटरव्यू लिया था। डा0 सुनीता यादव ने न सिर्फ चिकित्सा जगत वरन पूरी मानवता को नई राह दिखाई है और ऐसे लोग ही समाज में प्रेरणा-स्रोत बनते हैं !!

बुधवार, 22 सितंबर 2010

भारी उद्योग एवं लोक उपक्रम राज्यमंत्री अरूण यादव का जज्बा...

आजकल जब स्वतंत्रता दिवस समारोहों को मात्र औपचारिकता निभाने के तौर पर ही देखा जाने लगा है, उस दौर में भारतीय राजनीति के कुछ युवा नेता इस बीत गए जमाने को लौटाने की कवायद में जुटे नजर आ रहे हैं। इसी में एक नाम है भारी उद्योग एवं लोक उपक्रम राज्यमंत्री अरूण यादव का जो पिछले छह साल से 14, 15 और 16 अगस्त को अपने गृह नगर खरगौन से 12 ज्योतिर्लिंगों में एक ओंकारेश्वर तक पदयात्रा करते हैं। हर साल 90 किमी0 की इस यात्रा में बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी उनके साथ होते हैं। 2005 में ही अपने कॅरियर की शुरुवात करने वाले यादव कहते हैं, “मैंने नीमाड़ इलाके में बारिश होने के लिए मन्नत मांगी थी और कहा था कि हर साल पैदल यात्रा करूँगा।” वाकई यह विचार राष्ट्रीय एकजुटता और क्षेत्रीय समृद्धि के संदेश से जुड़ा है

साभार : इंडिया टुडे- 1 सितम्बर 2010

बुधवार, 15 सितंबर 2010

जाति-गणना के फैसले का स्वागत...

सरकार अंतत: जाति-गणना के लिए राजी हो गई. लम्बे विरोध और तमाम झंझावातों के बाद ही सरकार को अंतत: यह सुधि आई कि इसके कितने फायदे हैं. जाति-गणना के पक्ष में 'यदुकुल' पर हमने पूरी एक सीरिज ही प्रकाशित की थी. खैर, देर से ही सही सरकार का यह फैसला स्वागत-योग्य है. आशा की जानी चाहिए कि इस गणना के बाद तमाम आमूल-चूल परिवर्तन देखे जा सकेंगें. !!

गुरुवार, 9 सितंबर 2010

बिरहा गायन सम्राट राम कैलाश यादव का जाना....

बात हो हल्ले की नहीं है मगर फिर कुछ तो आहट होनी थी उसके जाने पर जो उसके काम को बाकी दुनिया की तरफ से सही आदर हो सकता था.,मगर ऐसा कुछ हुआ नहीं. गाँव के ठेठपन को आभास कराता एक लोककलाविद हमारे बीच अपने सादेपन और लोक गायकी की खुशबू बिखेरता हुआ ही अचानक चल बसा और मीडिया जगत में आहट तक ना हुई.दिल तब अधिक दु;खता है जब देश का कोई सादगी संपन्न कलाकार ये जहां चुपचाप छोड़ जाता है. उसके मरने के बाद उसके काम को सभी रोते देखें हैं मगर इस बार यूं.पी.के बिरहा गायन को ना केवल ज़िंदा रखने बल्कि अपने और से उसे समृद्ध और संपन्न बनाने में कोइ कसर नहीं छोड़ने वाले उसी दिशा में अपना जीवन फूँक देने वाले राम कैलाश यादव जी को क्या मिला.वैसे जो भी उनके संपर्क में आया वो ही समझ सकता है कि वक्त के साथ बिरहा के कानफोडू होने और बिगड़ जाने की हद तक आने पर उनका काम कितना महत्वपूर्ण है.जो सदा याद आयेगा. देश की कलापरक संस्थाएं ये आभास आज भी करती हैं.खैर भौतिकतावादी इस युग में कलापरक बात करना बीन बजाना लगने लगा है. इनसे अच्छा तो कुछ संस्कृतिप्रेमी मित्रों के साथ एक बैठक कर उन्हें याद कर लें बेहतर लगता है.वो भी बिना प्रेस नोट जारी किए.क्योंकि इस तरह के प्रेस नोट छप जाना कम आश्चर्यजनक बात नहीं है.

हमारे अपने जीवन से ही कुछ प्रमुख और जरूरी मूल्यों की बात अपने संगीतपरक कार्यक्रम के ज़रिए करने वाले राम कैलाश यादव संगीत नाटक आकादेमी से सम्मानित आम आदमी के गायक थे.उनके साथ पिछले दिनों आई.आई.टी.कानपुर में स्पिक मैके के राष्ट्रीय अधिवेशन के तहत छ; दिन रहने का मौक़ा मिला.जहां उनकी सेवा और उनके साथ कुछ हद तक अनौपचारिक विचार-विमर्श के साथ ही वहीं उनके गाये-सिखाए लोक गीतों पर रियाज़ के दौर बहुत याद आते हैं . अब तो वे ज्यादा गहरी यादों के साथ हमारे बीच हैं,क्योंकि वे चल बसे.आदमी के चले जाने के बाद वो ज्यादा प्यारे हो जाते हैं.ये ज़माने की फितरत भी तो है.उसी ज़माने में खुद को अलग रख पाना बहुत मुश्किलाना काम है.गांवों-गलियों और पनघट के गीत गाने वाला एक मिट्टी का लाडला ह्रदय गति से जुडी बीमारी के कारण चल बसा.

वे अपने मृत्यु के अंतिम साल में भी हमेशा की तरह भारतीय संकृति पर यथासमय भारी लगने वाली अन्य संस्कृतियों के हमले से खासे नाराज़ नज़र आते थे. कानपुर में उनका कहा एक वाक्य आज भी कचोटता है कि आज के वक्त में खाना और गाना दोनों ही खराब हो गया है.ठेठ यूं.पी. की स्टाइल में कही जाने वाली उनकी बातें भले ही कई बार समझ में नहीं आती हों लेकिन उनका लहजा और उस पर भी भारी उनके चहरे पर आने वाली अदाएं असरदार होती है.धोती-कुर्ते के साथ उनके गले में एक गमछा सदैव देखा जा सकता था.उनके गाए गीतों में अधिकांशत; अपने मिट्टी की बात है या कुछ हद तक उन्होंने मानव समाझ से जुड़ी बुराइयों पर खुल कर गाया बजाया है.उनके कुछ वीडियो और ऑडियो गीत नेट पर मिल जायेंगे,मगर नहीं मिल पाएगा तो राम कैलाश यादव का मुकराता चेहरा.ज्यादातर उनके गायन की शुरुआत में ओ मोरे राम ,हाय मोरे बाबा,मोरे भोले रसिया कहते हैं.और उस पर भी भारी उनके पीछे टेर लगाकर गाते उनके साथी . आज उनके बगैर बहुर अधूरे लगते हैं.कोइ तो उनके साथ गाते बजाते बुढा हो तक गया है.

अपने सभी मिलने वालों में भगवान् के दर्शन करने वाले निरंकारी भाव वाले गुरूजी के कई संगीत एलबम निकाले हैं. जिनमें उन्नीस सौ पिच्चानवें से अठ्यानवें के बीच निकले सती सुलोचना,दहेज़,क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद,अभिमानी रावण ख़ास हैं.उन्होंने देशभर के लगभग सभी बड़े शहरों को अपने कार्यक्रम से नवाज़ा था.उनके साथ लोक वाध्य यंत्रों की एक पांच-छ; कलावृन्द की मंडली होती रही.वे खुद खड़े होकर अपनी प्रस्तुती देते थे. बीच-बीच में कुछ अंगरेजी डायलोग बोलना और मूछों पर हाथ फेरना उन पर फबता था.उनसे सिखा एक गीत आज भी याद है जो मैं गुनगुनाता हूँ. बिरहा का कजरी में गाया जाने वाला ये एक ठेठ रंग है.कि

हमरे नईहर से घुमरी घुमरी आवे बदरा

आवे बदरा आवे बदरा ,हमरे ………….

जाईके बरस बदरा वांई धोबी घटवा

जहां धोबइन भीगोईके पछारे कपड़ा

हमरे नईहर से घुमरी घुमरी आवे बदरा ……………..

जाईके बरस बदरा वांई रे कुंवनियाँ

जहां पनिहारिन निहुरिके भरत बा घघरा

हमरे नईहर से घुमरी घुमरी आवे बदरा ……………..

जाईके बरस बदरा वांई रे महलियाँ

जहां बिरहिन निहारता पिया का डगरा

हमरे नईहर से घुमरी घुमरी आवे बदरा ……………..


जाईके बरस बदरा वांई फूल बगियाँ

जहां मलिनिया बईठके गुहत बा गुजरा

हमरे नईहर से घुमरी घुमरी आवे बदरा ……………..

जाईके बरस बदरा धनवा के खेतवा

जहां जोहतबा किसानिन उठाईके नजारा

उनके नहीं रहने के पांच दिन बाद ये खबर मुझे कोटा,राजस्थान के संस्कृतिकर्मी और स्पिक मैके के राष्ट्रीय सलाहकार अशोक जैन और स्पिक मैके कार्यकर्ता वीनि कश्यप ने दी . मैं एक ही बात सोच रहा था कि इस ज़माने में कलाकार तो बहुत मिल जाते हैं मगर सही इंसान नहीं मिल पाते .आज के दिन एक कलाकार के साथ के रूप में याद रहने वाला दिलवाला इंसान हमारे बीच नहीं रहा.उनके पांचवें बेटे कृष्ण बहादुर से बातचीत पर जाना कि गुरूजी ने अपना अंतिम सार्वजनिक कार्यक्रम स्पिक मैके आन्दोलन की पुणे शाखा के लिए एक सितम्बर को ही दिया था.वैसे सन अठ्ठासी से हार्ट अटक के मरीज यादव अब तक इलाहबाद से इलाज ले रहे है थे. बीमारी के चलते अचानक तबियत नासाज हुई और तीन सितम्बर को उनके गाँव लमाही जो ठेठ यूं.पी. के हरिपुर तहसील में पड़ता है से पास के कस्बे ले जाते रास्ते में ही मृत्यु हो गई.अब उनके पीछे छ; बेटे हैं,बेटी कोइ नहीं है . मगर अचरज की बात हो या शोध की कि उनमें से एक भी बिरहा नहीं गाता है. हाँ उनके दो पोते जरुर इस काम को सीख कर आज रेडियो के ज़रिए बहुत अच्छा गा-बजा रहे हैं.प्रेमचंद और दिनेश कुमार जो पच्चीस-छब्बीस सालाना उम्र लिए युवा सृजनधर्मी हैं.मतलब राम कैलाश जी यात्रा के जारी रहने आसार हैं.

भले ही और लोगों ने बिरहा गायन को मनोरंजन के लिए खुला छोड़कर तार-तार कर दिया हो मगर गुरु राम कैलाश जी आज तक भी अपने दम पर सतत बने हुए थे. अगर उनके नहीं रहने के बाद भी उन्हें सही श्रृद्धांजली देनी है तो हमें अपनी रूचि में संगीत को परख कर सुनने की आदत डालनी चाहिए. राम कैलाश जी सबसे ज्यादा संगीत के इस बिगड़ते माहौल और लोक स्वरुप का बँटाधार करते इन कलाकारों से दु:खी थे.वैसे इस बिरहा गायन की परम्परा को देशभर में बहुत से अन्य कलाकार भी यथासम्भव आगे बढ़ा रहे हैं,मगर उनकी अपने सीमाएं और विचारधारा हैं.ऐसे में ज्ञान प्रकाश तिपानिया,बालेश्वर यादव,विजय लाल यादव भी इस क्षेत्र से जुड़े कुछ ख़ास नाम हैं.ये यात्रा तो आगे बढ़ेगी ही,मगर दिशा क्या होगी,भगवान् जाने.

सारांशत: कुछ भी कहो उस प्रखर सृजनधर्मी की गहन तपस्या का कोइ सानी नहीं है. एक बात गौरतलब है कि जितने बड़े तपस्वी गुजरे हैं.उनके बाद हुई खाली जगह ,यूं ही खाली पडी रही.बात चाहे उस्ताद बिस्मिलाह खान की हों या हबीब तनवीर की ,कोमल कोठारी की या फिर एम्.एस.सुब्बुलक्ष्मी की,बात सोला आना सच्ची है.

साभार : माणिक जी : जनोक्ति ( 9 सितम्बर, 2010 को प्रकाशित)

सोमवार, 6 सितंबर 2010

मृत्युभोज बंद कराने के लिए अलख जगा रही हैं सूरज कुमारी यादव

समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो रुढियों से परे नई नजीरें स्थापित करते हैं. यहाँ तक की इसमें उम्र भी बाधा नहीं आती. इसी कड़ी में इंदौर शहर की एक बुजुर्ग महिला ने मृत्युभोज बंद कराने के लिए सामाजिक जंग छेड़ रखी है। शुरुआत अपने पति रामदयाल यादव से की और उनके दिवंगत होने पर मृत्युभोज नहीं दिया। इसके बाद पिछले माह भाई जगतसिंह यादव के निधन होने पर भी इस कुप्रथा को नहीं होने दिया। शहर के साथ ही प्रदेश के करीब 50 गांवों में उन्होंने इसके खिलाफ अलख जगाया है।

ये जांबाज महिला हैं अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा (महिला) की अध्यक्ष 70 वर्षीय सूरजकुमारी यादव। उनके प्रयास से गुना, शिवपुरी, मुरैना जिलों में अधिकांश परिवारों में मृत्युभोज बंद हो गया है। जबलपुर, ग्वालियर में भी कुछ जगह सफलता मिली है। सागर जिले के ग्राम जलंधर में तो सभी समाज के लोगों ने मृत्युभोज बंद कराने की लिखित रजामंदी दी है।

श्रीमती यादव बताती हैं शहर में यादव समाज के 30 से ज्यादा परिवारों ने मृत्युभोज बंद करने का संकल्प लिया है। वे समाज के कार्यक्रमों में जाकर मृत्युभोज बंद कराने का प्रस्ताव रखकर उसे पारित कराते हैं। उन्होंने कहा परिजन के निधन पर चाहें तो कन्याओं और कर्मकांड कराने वाले पंडित को भोजन कराया जा सकता है। श्रीमती यादव का मानना है कि मृत्युभोज बंद करने वालों का शासन स्तर पर और समाज में सम्मान होना चाहिए।

करीब पांच साल पहले मेडिकल कॉलेज में देहदान की घोषणा कर चुकी श्रीमती यादव जनसहयोग से एक कोष भी बनाना चाहती हैं, जिससे जरूरतमंद महिलाओं की सहायता और बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठाया जा सके।

इस उम्र में सूरजकुमारी यादव का यह जज्बा वाकई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है !!

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

सोलह कलाओं के अवतार : श्री कृष्ण

यद्‌यपि प्रत्‍येक पुराण में अनेक देवी देवताओं का वर्णन हुआ है तथा प्रत्‍येक पुराण में अनेक विषयों का समाहार है तथापि शिव पुराण, भविष्‍य पुराण, मार्कण्‍डेय पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण, स्‍कन्‍द पुराण, कूर्म पुराण, वामन पुराण, ब्रह्माण्‍ड पुराण एवं मत्‍स्‍य पुराण आदि में ‘शिव' को; विष्‍णु पुराण, नारदीय पुराण, गरुड़ पुराण एवं भागवत पुराण आदि में ‘विष्‍णु' को; ब्रह्म पुराण एवं पद्‌म पुराण में ‘ब्रह्मा' को तथा ब्रह्म वैवर्त पुराण में ‘सूर्य' को अन्‍य देवताओं का स्रष्‍टा माना गया है।


पुराणों के गहन अध्‍ययन से स्‍पष्‍ट होता है कि पहले शिव की उपासना का विशेष महत्‍व था किन्‍तु तद्‌नन्‍तर विष्‍णु की भक्‍ति एवं उपासना का विकास एवं महत्‍व उत्‍तरोत्‍तर बढ़़ता गया। वासुदेव, नारायण, राम एवं कृष्‍ण आदि विष्‍णु के ही अवतार स्‍वीकार किए गए। 14 वीं शताब्‍दी तक आते आते राम एवं कृष्‍ण ही इष्‍टदेवों में सर्वाधिक मान्‍य एवं प्रतिष्‍ठित हो गए। अलग अलग कालखंडों में विष्‍णु, नारायण, वासुदेव, दामोदर, केशव, गोविन्‍द, हरि, सात्‍वत एवं कृष्‍ण एक ही शक्‍ति के वाचक भिन्‍न नामों के रूप में मान्‍य हुए। महाभारत के शान्‍ति पर्व में वर्णित है -

‘‘ मैं रुद्र नारायण स्‍वरूप ही हूँ। अखिल विश्‍व का आत्‍मा मैं हूँ और मेरा आत्‍मा रुद्र है। मैं पहले रुद्र की पूजा करता हूँ। आप अर्थात्‌ शरीर को ही नारा कहते हैं। सब प्राणियों का शरीर मेरा ‘अयन' अर्थात्‌ निवास स्‍थान है, इसलिए मुझे ‘नारायण' कहते हैं। सारा विश्‍व मुझमें स्‍थित है, इसी से मुझे ‘वासुदेव' कहते हैं। सारे विश्‍व को मैं व्‍याप लेता हूँ, इस कारण मुझे ‘विष्‍णु' कहते हैं। पृथ्‍वी, स्‍वर्ग एवं अंतरिक्ष सबकी चेतना का अन्‍तर्भाग मैं ही हूँ, इस कारण मुझे ‘दामोदर' कहते हैं। मेरे बाल सूर्य, चन्‍द्र एवं अग्‍नि की किरणें हैं, इस कारण मुझे ‘केशव' कहते हैं। गो अर्थात्‌ पृथ्‍वी को मैं ऊपर ले गया इसी से मुझे ‘गोविन्‍द' कहते हैं। यज्ञ का हविर्भाग मैं हरण करता हूँ, इस कारण मुझे ‘ हरि' कहते हैं। सत्‍वगुणी होने के कारण मुझे ‘सात्‍वत' कहते हैं। लोहे का काला फाल होकर मैं जमीन जोतता हूँ और मेरा रंग काला है, इस कारण मुझे ‘कृष्‍ण' कहते हैं। ''

भगवान कृष्‍ण के अनेकानेक रूप हैं। उनको सोलह कलाओं का अवतार माना जाता है। श्री कृष्‍ण के अतन्‍त प्रकार के रूप हैं। जो रूप सर्वातीत, अव्‍यक्‍त, निरंजन, नित्‍य आनन्‍दमय है उसका वर्णन करना सम्‍भव ही नहीं है क्‍योंकि अनन्‍त सौन्‍दर्य के चैतन्‍यमय आधार को भाषा में व्‍यक्‍त नहीं किया जा सकता। महाभारत, शास्‍त्रों एवं पुराणों में जो वर्णित है उस दृष्‍टि से श्री कृष्‍ण के तीन रूप प्रमुख हैं -

1 ़ महाभारत के कृष्‍ण
2 ़ गीता के कृष्‍ण
3 ़ भागवत तथा उसके आधार पर काव्‍य में वर्णित कृष्‍ण

महाभारत के कृष्‍ण
महाभारत में ‘नारद प्रसंग' में श्री कृष्‍ण के विश्‍व रूप का वर्णन मिलता है किन्‍तु यहाँ प्रधानता कृष्‍ण के मानवीय रूप की ही है। महाभारत में कृष्‍ण के कुशल राजनीति वेत्‍ता, कूटनीति विशारद एवं वीरत्‍व विधायक स्‍वरूप का निदर्शन है।

गीता के कृष्‍ण
गीता में श्री कृष्‍ण के विश्‍व व्‍यापी स्‍वरूप एवं परब्रह्म स्‍वरूप का प्रतिपादन है। श्री कृष्‍ण स्‍वयं अपना विश्‍व रूप अर्जुन को दिखाते हैं। गीता में श्री कृष्‍ण को प्रकृति और पुरुष से परे एक सर्व व्‍यापक, अव्‍यक्‍त एवं अमृत तत्‍व माना गया है और उसे परम पुरुष की संज्ञा से अभिहित किया गया है।

भागवत तथा उसके आधार पर काव्‍य में वर्णित कृष्‍ण
भागवत में यद्‌यपि अनेक अवतारों का वर्णन है किन्‍तु प्रधानता की दृष्‍टि से कृष्‍ण को पूर्ण ब्रह्म मानकर कृष्‍ण भक्‍ति की श्रेष्‍ठता प्रतिपादित है। भागवत में यद्‌यपि कृष्‍ण के 1 ़ असुर संहारक 2 ़ राजनीति वेत्‍ता एवं कूटनीति विशारद 3 ़ योगेश्‍वर 4 ़ परब्रह्म स्‍वरूप 5 ़ बालकृष्‍ण 6 ़ गोपी विहारी आदि सभी रूपों का वर्णन एवं विवेचन हुआ है किन्‍तु प्रधान रूप से कृष्‍ण के रसिकेश्‍वर स्‍वरूप की सरस अभिव्‍यंजना है। भागवत के पारायण से प्रेमाभिभूत भक्‍तों को गोकुल, ब्रज एवं वृन्‍दावन में विहार करने वाले नन्‍द नन्‍दन रसिक शिरोमणि गोपाल कृष्‍ण की लीलाओं से सहज रूप से परमानन्‍द की प्राप्‍ति होती है।

श्रीमद्‌भागवतकार जहाँ अलौकिकता एवं भक्‍ति से पुष्‍ट परमानन्‍द के रस से निमज्‍जित करता है वहीं परवर्ती आचार्यों एवं साहित्‍यकारों ने गोपीवल्‍लभ एवं राधावल्‍लभ कृष्‍ण के प्रेम की शास्‍त्रीय मीमांसा एवं काव्‍यात्‍मक अभिव्‍यंजना की है। सूरदास जैसे कवियों ने यशोदा माता के वात्‍सल्‍य का सहज एवं सरस चित्रांकन भी किया है।

रामानुजाचार्य ने भक्‍ति को नारायण, लक्ष्‍मी, भू और लीला तक ही सीमित रखा। निम्‍बार्काचार्य ने दक्षिण भारत से वृन्‍दावन में आकर उत्‍तर भारत में कृष्‍ण और सखियों द्वारा परिवेष्‍ठित राधा को महत्‍व दिया। निम्‍बार्क की भक्‍ति परम्‍परा में तथा विष्‍णु स्‍वामी से प्रभावित होकर उत्‍तर भारत में राधा कृष्‍ण की भक्‍ति का प्रचार प्रसार करने वाले आचार्यों में सर्वाधिक महत्‍व वल्‍लभाचार्य एवं चैतन्‍य महाप्रभु का है।

वल्‍लभाचार्य ने अपनी भक्‍ति में ‘प्रपत्‍ति'/‘शरणागति' को विशेष स्‍थान दिया। आपने गोपाल कृष्‍ण की लीलाओं को अलौकिकता प्रदान की। आपकी स्‍थापना है कि लीला पुरुषोत्‍तम श्रीकृष्‍ण राधिका के साथ जिस लोक में विहार करते हैं वह विष्‍णु और नारायण के बैकुंठ से भी ऊँचा है। इस स्‍थापना के कारण इन्‍होंने ‘गोलोक' को बैकुंठ से भी अधिक महत्‍व प्रदान किया।

चैतन्‍य महाप्रभु ने श्रीकृष्‍ण संकीर्तन के महत्‍व का प्रतिपादन किया। उनके अनुसार यह चित्‍तरूपी दर्पण के मैल को मार्जित करता है, संसाररूपी महादावग्‍नि को शान्‍त करता है, प्राणियों को मंगलदायिनी कैरव चंद्रिका वितरित करता है। यह विद्‌यारूपी वधू का जीवन स्‍वरूप है। यह आनन्‍दस्‍वरूप को प्रतिदिन बढ़ाता है।

जयदेव, विद्‌यापति, चंडीदास एवं सूरदास जैसे अष्‍टछाप के कवियों ने गोपियों के कृष्‍णानुराग एवं ‘युगल उपासना' से प्रेरित राधा कृष्‍ण के उस प्रेम की सहज भावाभिव्‍यंजना की है जहाँ राधा श्‍याम के रंग में रंग जाती हैं तथा श्‍याम राधा के रंग में रंग जाते हैं।

कुछ विद्वानों नें श्रीमद्‌भागवत तथा उससे प्रेरित काव्‍य ग्रन्‍थों में वर्णित गोपियों के कृष्‍णानुराग एवं ‘युगल उपासना' से प्रेरित राधा कृष्‍ण के प्रेम प्रसंगों को भगवान श्रीकृष्‍ण के चरित पर लगाए गए असत्‍य, निर्मूल एवं निराधार लांछन माना है।

भक्‍ति परम्‍परा के परिप्रेक्ष्‍य में लीला प्रसंगों के आध्‍यात्‍मिक निहितार्थ हैं। लोक में जो जितना अश्‍लील एवं गर्हित है वह गोलोक में उतना ही पावन एवं मंगलकारी है। प्रत्‍येक लीला के आध्‍यात्‍मिक अर्थों की गहन एवं विशद व्‍याख्‍याएँ सुलभ हैं। उनकी पुनुरुक्‍ति की कोई प्रयोजनसिद्‌धता नहीं है। सम्‍प्रति हम केवल यह संकेत करना चाहते हैं कि लोक की दृष्‍टि से लोक में परकीया प्रेम गर्हित एवं अपराध है किन्‍तु भक्‍ति में गोपियाँ कुल मर्यादा का अतिक्रमण कर कामरूपा प्रीति करती हैं। लोक में जो श्रृंगार प्रेम है भक्‍ति में वह मधुर भक्‍ति रस है, माधुर्य भाव की भक्‍ति है। लौकिक प्रेम के जितने स्‍वरूप हो सकते हैं, वे सभी मधुर भक्‍ति में आ जाते हैं। कृष्‍ण में लीन होने के कारण गोपियों की कामरूपा प्रीति भी निष्‍काम है तथा सोलह हज़ार गोपियों के साथ ‘रास' रचाने वाले कृष्‍ण तत्‍वतः ‘योगेश्‍वर' है।

प्रेम के इस धरातल पर दैहिक सीमा से उद्‌भूत प्रेम उन सीमाओं का अतिक्रमण कर चेतना के स्‍तर पर प्रतिष्‍ठित हो जाता है। कृष्‍ण लीलाओं में प्रेम के जिस उन्‍मुक्‍त स्‍वरूप की यमुना तट और वृन्‍दावन के करील कुंजों में रासलीलाओं की धवल चॉदनी छिटकी है उसे आत्‍मसात करने के लिए भारत की तंत्र साधना को समझना होगा। ‘ हिन्‍दी निर्गुण भक्‍ति काव्‍य परम्‍परा' शीर्षक आलेख में लेखक ने विस्‍तार के साथ प्रतिपादित किया है कि भक्‍ति काल के साहित्‍य की रस-साधना में जो भक्‍ति है वह तत्‍वतः आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति ही है। भक्‍ति की उपासना वास्‍तव में आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति की ही उपासना है। सभी संतो का लक्ष्‍य भाव से प्रेम की ओर अग्रसर होना है। प्रेम का आविर्भाव होने पर ‘भाव' शांत हो जाता है। भक्‍त महाप्रेम में अपने स्‍वरूप में प्रतिष्‍ठित हो जाता है।

उदाहरण के लिए कबीर ने जीवन की साधना के बल पर जाना था कि ‘ मानस' यदि विकारों से मुक्‍त होकर ‘निर्मल' हो जाता है तो उसमें ‘अलख निरंजन' का प्रतिबिंब अनायास प्रतिफलित हो जाता है। ‘ प्‍यंजर प्रेम प्रकासिया, अन्‍तरि भया उजास'। हम यह कहने के लोभ का संवरण नहीं कर पा रहे हैं कि सूफियों ने भी भाव के केन्‍द्र को भौतिक न मानकर चिन्‍मय रूप में स्‍वीकार किया है तथा कृष्‍ण भक्‍तों की भाव साधना में भी भाव ही ‘महाभाव' में रूपान्‍तरित हो जाता है। कृष्‍ण भक्‍त कवियों के काव्‍य में भी राधा-भाव आत्‍म-शक्‍ति के अतिरिक्‍त अन्‍य नहीं है। अभी तक भक्‍ति काव्‍य को शंकराचार्य के अद्वैतवाद एवं वैष्‍णव मतवाद के आलोक में ही समझने का प्रयास होता रहा है। हमारी मान्‍यता है कि भक्‍ति काव्‍य को शांकर अद्वैतवाद के परिप्रेक्ष्‍य में मीमांसित करना उपयुक्‍त नहीं हैं।शांकर अद्वैतवाद में भक्‍ति को साधन के रूप में स्‍वीकार किया गया है, किन्‍तु उसे साध्‍य नहीं माना गया है। भक्‍तों ने भक्‍ति को साध्‍य माना है।

शांकर अद्वैतवाद में मुक्‍ति के प्रत्‍यक्ष साधन के रूप में ‘ज्ञान' को ग्रहण किया गया है। वहाँ मुक्‍ति के लिए भक्‍ति का ग्रहण अपरिहार्य नहीं है। वहाँ भक्‍ति के महत्‍व की सीमा प्रतिपादित है। वहाँ भक्‍ति का महत्‍व केवल इस दृष्‍टि से है कि वह अन्‍तःकरण के मालिन्‍य का प्रक्षालन करने में समर्थ सिद्ध होती है। भक्‍ति आत्‍म-साक्षात्‍कार नहीं करा सकती, वह केवल आत्‍म साक्षात्‍कार के लिए उचित भूमिका का निर्माण कर सकती है। भक्‍तों ने अपना चरम लक्ष्‍य भगवद्‌-दर्शन /प्रेम भक्‍ति माना है तथा भक्‍ति के ग्रहण को अपरिहार्य रूप में स्‍वीकार किया है। भक्‍तों की दृष्‍टि में भक्‍ति केवल अन्‍तःकरण के मालिन्‍य का प्रक्षालन करने वाली ‘वृत्‍ति' न होकर ‘आत्‍म शक्‍ति' ही है।

शांकर अद्वैतवाद में अद्वैत-ज्ञान की उपलब्‍धि के अनन्‍तर ‘भक्‍ति' की सत्‍ता अनावश्‍यक ही नहीं अपितु असम्‍भव है। भक्‍तों में अद्वैतज्ञान के बाद भी ‘ज्ञानोत्‍तरा भक्‍ति' की स्‍थिति है। इसका कारण हम बता चुके है कि भक्‍ति काल के साहित्‍य की रस-साधना में जो भक्‍ति है वह तत्‍वतः आत्‍मस्‍वरूपा शक्‍ति ही है। अंत में, मैं इस सम्‍बन्‍ध में यह भी निवेदन करना चाहता हूँ कि श्री कृष्‍ण के इन लीला प्रसंगों को इतिहास के प्रतिमानों के आधार पर नहीं परखा जा सकता। यह इतिहास का नहीं अपितु भक्‍ति का विषय है। इसी के साथ मैं यह भी जोर देकर कहना चाहता हूँ कि इसे मानवीय प्रेम की दृष्‍टि से भी जाँचा जा सकता है।

रसिक शिरोमणि गोपाल कृष्‍ण की लीलाओं से प्रेमासक्‍त भक्‍तों को जहाँ सहज परमानन्‍द प्राप्‍त होता है वहीं सहृदय पाठक को इनके पारायण से उमंग एवं उल्‍लास की प्रतीति होती है। श्री कृष्‍ण के इन लीला प्रसंगों में मानवीय प्रेम भी अपने सहज रूप में अभिव्‍यक्‍त है - इस बोध के साथ कि प्रेम में पुरुष और नारी के बीच विभाजक रेखायें खींचना अतार्किक एवं बेमानी हैं। इसी भारत में श्री कृष्‍ण के इन लीला प्रसंगों की काव्‍य रचना के पूर्व मिथुन युग्‍मों का शिल्‍पांकन न केवल खजुराहो अपितु कोणार्क, भुवनेश्‍वर एवं पुरी आदि अनेक देव मन्‍दिरों में हो चुका था। दाम्‍पत्‍य जीवन की युगल रूप में मैथुनी लौकिक चेष्‍टाओं एवं भावाद्रेकों को शरीर के सहज एवं अनिवार्य धर्म के रूप में स्‍वीकृति एवं मान्‍यता प्राप्‍त हो चुकी थी।

भारतीय तंत्र साधना की चरम परिणति एवं उत्‍कर्ष के काल में साधक सम्‍पूर्ण सृष्‍टि की आनन्‍दमयी विश्‍व वासना से प्रेरित, संवेदित एवं उल्‍लसित रूप में प्रतीति एवं अनुभूति कर चुका था । यह वह काल था जिसमें ‘ काम ' को हेय दृष्‍टि से नहीं देखा जाता था अपितु इसे जीवन के लिए उपादेय एवं श्रेयस्‍कर माना जाता था। समर्पण भाव से अभिभूत एकीभूत आलिंगन के फलीभूत पृथकता के द्वैत भाव को मेटकर तन - मन की एकचित्‍तता, मग्‍नता एवं एकात्‍मता में अस्‍तित्‍व के हेतु भोग से प्राप्‍त ‘ कामानन्‍द ' की स्‍थितियों को पाषाण खंडों में उत्‍कीर्ण करने वाले नर - नारी युग्‍मों के कलात्‍मक शिल्‍प वैभव को चरम मानसिक आनन्‍द प्राप्‍त करने का हेतु माना गया था। इस काल में इसी कारण इन्‍द्रिय दमन, ब्रह्मचर्य, नारी के प्रति तिरस्‍कार की भावना आदि बातें करना बेमानी थीं।

इस पृष्‍ठभूमि में श्री कृष्‍ण के लीला प्रसंगों को समझने का प्रयास होना चाहिए। इन लीलाओं का जीवन दर्शन यह है कि जीवन जीने के लिए है, पलायन करने के लिए नहीं है। वैराग्‍य भावना से जंगल में जाकर तपस्‍या तो की जा सकती है किन्‍तु उत्‍साह, उछाह, उमंग, उल्‍लास, कर्मण्‍यता, जीवंतता, प्रेरणा, रागात्‍मकता एवं सक्रियता के साथ गृहस्‍थ जीवन नहीं जिया जा सकता। गार्हस्‍थ जीवन का विधान है जिसमें पुरुष एवं स्‍त्री के बीच प्रजनन के उद्‌देश्‍य से मर्यादित काम का प्रेम में पर्यवसान होता है।

प्रेम प्रसंगों के गति पथ की सीमा शरीर पर आकर रुक नहीं जाती, शरीर के धरातल पर ही निःशेष नहीं हो जाती अपितु प्रेममूलक एर्न्‍द्रिय संवेगों की भावों में परिणति और भावों का विचारों में पर्यवसान तथा विचारों एवं प्रत्‍ययों का पुनः भावों एवं संवेगों में रूपान्‍तरण - यह चक्र चलता रहता है। काम ऐन्‍द्रिय सीमाओं से ऊपर उठकर अतीन्‍द्रिय उन्‍नयन की ओर उन्‍मुख होता है। प्रेम शरीर में जन्‍म लेता है लेकिन वह ऊर्ध्‍व गति धारण कर प्रेमी प्रेमिका के मन के आकाश की ओर उड्‌डीयमान होता है। इस पृष्‍ठभूमि में जब हम श्रीमद्‌भागवत तथा इससे अनुप्राणित परवर्ती कृष्‍ण काव्‍य का अनुशीलन करते हैं तो पाते हैं कि यह ऐसी जीवन धारा है जिसमें मानवीय प्रेम अपनी सम्‍पूर्णता में बिना किसी लाग लपेट के सहज भाव से अवगाहन करता है। प्रेम की इस सहज राग साधना में गृहस्‍थ जीवन एवं सांसारिक जीवन पूरे उल्‍लास के प्रमुदित होता है।

प्रोफेसर महावीर सरन जैन, सेवानिवृत्‍त निदेशक, केन्‍द्रीय हिन्‍दी संस्‍थान,
123- हरिएन्‍कलेव, चांदपुर रोड, बुलन्‍दशहर


साभार : रचनाकार

कृष्ण-जन्माष्टमी की बधाइयाँ




यदुवंशियों के पूर्वज भगवान श्री कृष्ण माने जाते हैं। सोलह कलाओं में माहिर भगवान श्री कृष्ण का आज जन्म-दिन है और सारा देश धूम-धाम से कृष्ण-जन्माष्टमी मना रहा है. भगवान श्री कृष्ण का पूरा जीवन ही मानवता को सन्देश देता है, प्रेरणा देता है. इस पर्व पर भगवान श्री कृष्ण का पुनीत स्मरण करते हुए समस्त धरावासियों के लिए सुख-समृधी-आरोग्य की कामना है. इस अनुपम पर्व कृष्ण-जन्माष्टमी पर आप सभी को शुभकामनायें और बधाइयाँ. भगवान श्री कृष्ण आपकी सभी मनोकामनाओं को पूरी करें !!

मंगलवार, 31 अगस्त 2010

प्रतिभाशाली सुनयना यादव ने जीती बिल गेटस स्पर्धा

कहते हैं प्रतिभा को पंख होते हैं, बस उचित अवसर मिलना चाहिए. हरियाणा के हिसार जिले में हांसी के पास मिलकपुर की 18 वर्षीय प्रतिभाशाली छात्रा सुनयना यादव ने अमेरिका की गेट्स मिलियन स्कॉलर प्रतियोगिता 2010 में सर्वोच्च स्थान पाया है। अब सुनयना की डायरेक्टोरेट तक की शिक्षा का खर्च बिल गेटस फाउंडेशन वहन करेगा। सुनयना यादव ने पांचवीं तक की शिक्षा गांव मिलकपुर में पूरी की। उसके बाद वे अपने परिवार के साथ अमेरिका चली गई। वहां पर सुनयना के पिता राजेन्द्र यादव एक फर्म में इंजीनियर के पद पर कार्यरत हैं। सुनयना ने जूनियर ग्रेजुएट (भारतीय शिक्षा अनुसार 12वीं) की परीक्षा तक की पढ़ाई की है तथा अप्रैल 2010 में उसने बिल गेटस फाउंडेशन द्वारा आयोजित 2001 गेटस मिलियन स्कॉलर के तहत प्रवेश परीक्षा दी थी, जिसमें वह टॉप पर रही। गौरतलब है कि इस परीक्षा में मे 20हजार 500 विद्यार्थियों ने लिया, जिनमें से 1000 विद्याथियों को चुना गया। सुनयना उन सभी में टॉप रही।

उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 से बिल गेट्स फांउडेशन प्रतिभावान विद्यार्थियों को आर्थिक सहायता दे रहा है। परीक्षा का आयोजन 12 की परीक्षा के बाद होता है तथा 10 वषों तक डॉयरेक्टेरेट तक की शिक्षा का खर्च फांउडेशन वहन करता है। इसके तहत फाउंडेशन प्रतिवर्ष 1.6 बिलियन डालर बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करती है। गौरतलब है कि इससे पहले सुनयना की बड़ी बहन शिक्षा यादव ने भी दो वर्ष नासा में बिल गेटस फाउंडेशन स्कॉलरशिप के तहत नासा में प्रवेश पाया था। शिखा अब एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही है। सुनयना यादव का इरादा अमेरिका के टैक्सास राज्य में स्थापित यूनिर्वसिटी आफ टैक्सास में एमबीए की शिक्षा प्राप्त करने का है, जिसका खर्चा संस्था वहन करेगी।

यदुकुल की तरफ से सुनयना यादव को उज्जवल भविष्य हेतु बधाइयाँ !!

रविवार, 29 अगस्त 2010

'पीपली लाइव' से चर्चा में हैं रघुबीर यादव

सफलता-असफलता जिंदगी में लगी रहती हैं. जरुरत उनसे उबर कर अपने कार्य पर ध्यान देने की है. रघुबीर यादव का तो यही मानना है. आजकल पीपली लाइव फिल्म से चर्चा में आये, बंधी बंधाई जिंदगी से इत्तेफाक नहीं रखने वाले अभिनेता रघुवीर यादव का कहना है कि पीपली लाइव जैसी फिल्में सिनेमाई भाषा को बदल रही है और उनका मानना है कि किसी फिल्म की पटकथा ही उसकी असली हीरो होती है।

पिछले दिनों अपनी फिल्म के प्रचार के सिलसिले में राजधानी आए रघुवीर यादव ने कहा, भारतीय सिनेमा से पारसी थिएटर का प्रभाव पूरी तरह से नहीं समाप्त नहीं हुआ है। मगर पीपली लाइव जैसी फिल्में एक गांव की जिंदगी, महात्वाकांक्षा और द्वंद्व को प्रभावी तरीके से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करती हैं और इस तरह की फिल्में सिनेमा की एक नई भाषा गढ़ती हैं।

उन्होंने कहा, दरअसल किसी फिल्म की असली हीरो उसकी पटकथा होती है। हमारे यहां अभिनेता चरित्र नहीं निभाते है बल्कि हीरो की आभा में चरित्र विलुप्त हो जाता है। हर फिल्म में दर्शकों को किसी अभिनेता का अलग-अलग चरित्र होने के बावजूद एक ही व्यक्ति नजर आता है।

1985 में फिल्म मैसी साहब के लिए दो अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार पाने वाले अभिनेता ने कहा, फिल्म उद्योग में भाई भतीजावाद हावी है, लेकिन इससे थिएटर से आने वाले कलाकारों को दिक्कत नहीं होती।

फिल्मी गांवों के बारे में यादव ने कहा कि गांव को दिखाने के लिए जरूरी है कि इसे अंदर से महसूस किया जाए। बुंदेलखंडी के लोकगीत महंगाई डायन.. को कई लोग भोजपुरी का समझ लेते है। इसलिए इसकी लोक परंपरा की समझ भी बेहद जरूरी है।

अपनी भविष्य की योजना के बारे में यादव ने कहा, जिंदगी इतनी छोटी है कि किसी मुद्दे या लाइन के बारे में सोच ही नहीं पाता हूं। मेरी इस साल के अंत तक दो फिल्में कुसर प्रसाद का भूत और खुला आसमान आने वाली है।

अभिनय को पेशा बनाने के बारे में उन्होंने कहा कि संगीत सीखने निकला था लेकिन एक्टिंग गले पड़ गई। अब लगता है इससे अच्छा कोई और पेशा नहीं हो सकता क्योंकि इसमें दूसरे की जिंदगी जीने का मौका मिलता है। किसी अनजान व्यक्ति की रूह से गुजरना और उसकी तकलीफ को महसूस करने का अलग ही मजा है।

फिल्म की सफलता के बारे में उन्होंने कहा कि इसके लिए निर्माता निर्देशक की नीयत और ईमान अधिक मायने रखती है। उन्होंने कहा, बेइमानी वहां से शुरू होती है जब आप फिल्म को व्यावसायिक सफलता की दृष्टि से बनाना शुरू करते हैं।

फिल्म के गाने महंगाई डायन को लेकर उठे विवाद के बारे में उन्होंने कहा, आमिर खान सुलझी हुई तबियत के व्यक्ति हैं और लोकप्रियता के लिए किसी तरह के हथकंडे अपनाने वाले नहीं हैं बल्कि वह कहानी की ताकत पर यकीन करते हैं।

आमिर के बारे में यादव ने कहा कि वह पटकथा से लेकर अभिनय तक हर पहलू पर नजर रखते हैं। वह सहयोगी कलाकारों की सुनने वाले शख्स है उन पर अपनी चीजें थोपने वाले नहीं है। किस चरित्र से उनके अंदर के अभिनेता को संतुष्टि मिली, इस पर यादव ने कहा, मुझे अभी तक किसी किरदार से संतुष्टि नहीं मिली है और मेरी कामना है कि मुझे कभी संतुष्टि न मिले। मुझे हर किरदार को निभाने के बाद उसमें कमियां नजर आने लगती हैं।

वर्तमान समय के सबसे अच्छे अभिनेता के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, नसीर और ओम पुरी का नाम लिया जा सकता है। लेकिन मुझे सही मायने में बच्चे बेहतर अभिनेता नजर आते हैं, जिनमें किसी तरह की कोई लाग लपेट नहीं होती।

आस्कर तक भारतीय फिल्मों के नहीं पहुंच पाने के बारे में उन्होंने कहा, इसका बड़ा कारण यह है कि हमारे यहां क्वालिटी फिल्मों का निर्माण नहीं होता है और इसका गणित ही एकदम अलग है। ..और कुछ बेहतरीन फिल्में बनती है, लेकिन वे वहां तक पहुंच नहीं पाती है।

साभार : जागरण

शनिवार, 28 अगस्त 2010

नारी सशक्तिकरण की पर्याय : फूलबासन यादव

महिलाएं आज न सिर्फ सशक्त हो रही हैं, बल्कि लोगों को भी सशक्त बना रही हैं. ऐसी ही एक महिला है-श्रीमती फूलबासन यादव.श्रीमती फूलबासन यादव राजनांदगांव जिले के ग्राम सुकलदैहान की निवासी हैं। उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के बीच सामाजिक चेतना जाग्रत कर उनके आर्थिक विकास के लिए जिला प्रशासन का सहयोग लेकर जिले में ग्यारह हजार से अधिक महिला स्व-सहायता समूहों के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने इन महिला समूहों के माध्यम से लगभग साढ़े छह सौ गांवों में बाल विवाह, दहेज और शराब जैसी सामाजिक बुराईयों पर अंकुश लगाने के लिए जन-जागरण का ऐतिहासिक कार्य किया। छत्तीसगढ़ सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए श्रीमती फूलबासन यादव के रचनात्मक कार्यों को देखते हुए उन्हें वर्ष 2004 में राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर मिनी माता अलंकरण से सम्मानित किया था। राजधानी रायपुर में आयोजित 'राज्योत्सव' में मुख्य अतिथि पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के हाथों उन्हें राज्य स्तरीय इस प्रतिष्ठित सम्मान से नवाजा गया था। इसी कड़ी में श्रीमती यादव को वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी के हाथों जमनालाल बजाज अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।

श्रीमती यादव को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 9 मार्च, 2010 को नई दिल्ली में राष्ट्रपति राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने भी विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में महिला सशक्तिकरण की दिशा में उल्लेखनीय योगदान के लिए 'राष्ट्रीय स्त्री शक्ति' के अंतर्गत कन्नगी एवार्ड से भी सम्मानित किया . गौरतलब है कि केन्द्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्त्री शक्ति पुरस्कार योजना के तहत देश की प्रसिध्द महिलाओं के नाम पर अलग-अलग एवार्ड दिए जाते हैं। राष्ट्रपति ने श्रीमती यादव को वर्ष 2009 के इस एवार्ड के अंतर्गत तीन लाख रूपए की सम्मान राशि और प्रशस्ति पत्र भेंटकर बधाई और शुभकामनाएं दी।

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मूल्यों में विश्वास के प्रतीक राजनेता : राम नरेश यादव

उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ राजनेता रामनरेश यादव ने अपना 83वां जन्मदिन सदैव की तरह बड़ी सादगी से मनाया। इस मौके पर भारी संख्या में शुभचिंतकों और समर्थकों ने फूल-मालाएं और गुलदस्ते भेंट कर रामनरेश यादव 'बाबू जी' के दीर्घजीवी होने की कामनाएं कीं। कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी, कांग्रेस सांसद पीएल पुनिया, पूर्व राज्यपाल माता प्रसाद, कांग्रेस प्रवक्ता अखिलेश प्रताप सिंह, रामकृष्ण द्विवेदी, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सूर्यप्रताप शाही, सिराज मेहंदी सहित अनेक नेता, नौकरशाह और सामाजिक क्षेत्र के लोग भी रामनरेश यादव को जन्मदिन की बधाई देने पहुंचे। दिनभर उन्हें बधाईयां देने आने वालों का तांता लगा रहा। लोगों ने उन्हें फोन पर बधाईयां दीं। सवेरे घर पर सुंदरकाण्ड का पाठ हुआ और शाम को आवास पर ही काव्य गोष्ठी, मुशायरा जैसे विभिन्न कार्यक्रम भी आयोजित किए गए। वक्ताओं ने उनके व्यक्तित्व की लोकगीतों और विचारों के माध्यम से खुले दिल से सराहना करते हुए उनके प्रशासनिक और राजनीतिक जीवन की उपलब्धियों की चर्चा की।

लखनऊ का माल एवेन्यू बड़े-बड़े सत्ताधीशों और राजनेताओं से आबाद है। राजधानी का यह पॉश इलाका ज़हन में आते ही एहसास होता है कि इस अतिविशिष्ट क्षेत्र में हर कोई फाइव स्टार जीवनशैली से समृद्ध है। मेरे एक सहयोगी को वहां जाना था-सो उसके आग्रह पर मैं भी उसके साथ एक मॉल ऐवेन्यू पहुंचा जहां गेंदे के फूलों से सजे गेट के बाहर और भीतर का अत्यंत सादगी भरा नजारा देख मैने खुद से प्रश्न किया कि एक राजनेता और इतनी सादगी? जीहां! यह घर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामनरेश यादव का था जिनका कि 83 वां जन्मदिन था और उनके प्रशंसक शुभचिंतक, राजनेता रिश्ते-नातेदार सवेरे से ही आ जा रहे थे। बूंदी का लड्डू और एक गिलास पानी लेने के बाद मैं भी जन्मदिन की बधाई देने के लिए आगे बढ़ा। मेरा अभिवादन स्वीकार करते हुए उन्होंने भारी संख्या में मौजूद शुभचिंतकों की फूल मालाओं और गुलदस्तों को सीने से लगाया। राजनेताओं के जन्मदिन और उनकी छोटी-मोटी पार्टियां ही पूरे शहर और रास्तों को सर पर उठा लेती हैं, ये तो फिर भी राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इतने बड़े राजनेता का सादगी से भरा जन्मदिन उन राजनेताओं के लिए बहुत बड़ी नसीहत है जिनका जन्मदिन नोटों की थैलियों और रैलियों में बदल चुका है। रामनरेश यादव जब देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान थे तो वे अपने जन्मदिन या घर में किसी मांगलिक कार्य पर अत्यंत गरीब लोगों के बीच बैठकर अपने जीवन की जनसामान्य के लिए उपयोगिता का आकलन करते थे। आज भी उन्हें वैसा ही देखा जा रहा है।

आजमगढ़ के गांव आंधीपुर (अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में जन्मे रामनरेश यादव एक शिक्षक और एक अधिवक्ता के रूप में सामाजिक रूप से प्रगति करते हुए आगे चलकर एक ईमानदार और मूल्यों की राजनीति करने वाले आम आदमी के मददगार और एक दिग्गज राजनीतिज्ञ कहलाए। सही मायनों में उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का कोई मुकाबला नही है उत्तर प्रदेश की राजनीति में दिग्गजों के बीच एक दिग्गज राजनीतिज्ञ का खिताब आज भी उनके पास है, बस फर्क इतना है कि आज के कई बड़े कहलाए जा रहे राजनेता माफियाओं, गुंडों और बदमाशों के नेता/सरगना कहे जाते हैं और रामनरेश यादव एक आम आदमी के और मूल्यों आधारित राजनीति के साथ चलने वाले नेता माने जाते हैं। भीड़ एवं सुरक्षा कर्मियों के घेरे में चौबीस घंटे रहने की महत्वकांक्षा उन पर कभी भी भारी नहीं पड़ सकी। जो लोग रामनरेश यादव के सामाजिक और राजनीतिक जीवन से परिचित हैं वे इन लाइनों से जरूर सहमत होंगे। उद्योगपतियों की तरह अरबपति या खरबपति राजनेता बनने की होड़ में शामिल राजनेताओं से यदि रामनरेश यादव की तुलना की जाए तो सभी जानते हैं कि उन्होंने अकूत दौलत को छोड़कर नैतिक मूल्यों को अपनी पूंजी बनाया है वे अन्य नेताओं की तरह धनसंपदा के पीछे नही भागे, यही कारण है कि अपने राजनीतिक जीवन में वे कई बार उपेक्षा के शिकार भी हुए हैं। कहने वाले कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास जो कद्दावर नेता हैं या जिन्हें वज़नदार नेता कहा जाता है उनमें रामनरेश यादव का पड़ला काफी भारी है।

चकाचौंध भरे राजनेताओं के घरों पर ऐसे मौको पर जो प्रायोजित हलचल देखी जाती है वह यहां हमेशा सादगी के रूप में देखी गई है। उनसे मिलने आने वालों में जो लोग हैं रामनरेश यादव उनसे आत्मीयता और सम्मान से मिलते हैं और जैसा कि हर राजनेता के साथ होता है- जिस आगुंतक के प्रति पहले से जो भावनाएं रिश्ता एवं लगाव हो वह वहां उतना ही निकटता से प्यार-सम्मान और सौगात पाता है। उनके एक माल ऐवेन्यू पर आज के राजनेताओं जैसी भव्यता का भौंडा प्रदर्शन नहीं है या यह कहिए कि ऐसा जश्न नहीं है जो दूसरों को भीतर से चिढ़ाता हो। पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते उनको यहां एक बंगला आजीवन आवंटित है-उसमें भी उन्होंने कोई ऐसा अतिरिक्त निर्माण नहीं कराया जो शान और शौकत या रौब का एहसास कराता हो। एक लंबे समय से रामनरेश यादव का यह सरकारी बंगला इसी सच्चाई की गवाही देता है। जिन्हें उनका जन्मदिन मालूम है वे सवेरे से ही आ रहे हैं और जलपान के साथ अपने नेता का आशीर्वाद या अभिवादन ले रहे हैं।

रामनरेश यादव का समाजवादी आंदोलन और भारतीय राजनीति में हमेशा विशिष्ट स्थान रहा है। उन्होंने दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों के दुख-दर्द को बहुत करीब और गहराई से समझा है, डॉ लोहिया की विचारधारा से प्रेरित होने के नाते उनमें किसी के लिए तनिक भी भेदभाव नहीं दिखाई देता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी से निकले रामनरेश यादव प्रसिद्ध समाजवादी चिंतक एवं विचारक आचार्य नरेंद्र देव के प्रभाव में रहे हैं। पंडित मदनमोहन मालवीय और भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन से उनका सामाजिक जीवन काफी प्रभावित है।

अपने 55 वर्ष के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डालते हुए रामनरेश यादव कहते हैं कि कांग्रेस को छोड़ कोई भी दूसरी पार्टी देश की एकता-अखण्डता, राष्ट्रीय प्रतिबद्धता और जनकल्याण पर ध्यान नहीं दे रही है। उन्होंने इसीलिए राजीव गांधी के नेतृत्व में और कांग्रेस के सिद्धांतों में आस्था व्यक्त करने के पूर्व 12 अप्रैल 1989 को स्वेच्छा से राज्यसभा की सदस्यता के साथ-साथ विभिन्न पदों से त्याग-पत्र देकर कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा की थी। वे कहते हैं कि कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी है जो सिद्धांतों में आस्था रखकर देश को अंदर और बाहर समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्रीय व्यवस्था की संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकती है। उनका कहना है कि देश को एक स्थिर और सक्षम सरकार की जरूरत है जो कांग्रेस ही दे सकती है, खिचड़ी और लंगड़ी सरकार से अब देश का भला होने वाला नहीं है। कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा दल नहीं है जो देश को एक मजबूत सरकार दे सके।

साभार : स्वतंत्र आवाज़ डॉट कॉम

मंगलवार, 24 अगस्त 2010

वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर रक्षाबंधन मनाती : सुनीति यादव

रक्षाबंधन का पर्व करीब है। (24 अगस्त). यह सिर्फ भाई -बहन से जुड़ा नहीं बल्कि मानवता की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है. हममें से तमाम लोग अपने स्तर पर मानवता को बचने हेतु पर्यावरण संरक्षण में जुटे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं- जीवन के समानांतर ही जल, जमीन और जंगल को देखने वाली ग्रीन गार्जियन सोसाइटी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुनीति यादव। पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही एवं छत्तीसगढ़ में एक वन अधिकारी के0एस0 यादव की पत्नी सुनीति यादव सार्थक पहल करते हुए वृक्षों को राखी बाँधकर वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम का सफल संचालन कर नाम रोशन कर रही हैं। इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें ‘महाराणा उदय सिंह पर्यावरण पुरस्कार, स्त्री शक्ति पुरस्कार 2002, जी अस्तित्व अवार्ड इत्यादि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। सुनीति यादव द्वारा वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम चलाये जाने के पीछे एक रोचक वाकया है। वर्ष 1992 में उनके पति जशपुर में डी0एफ0ओ0 थे। वहां प्राइवेट जमीन में पांच बहुत ही सुन्दर वृक्ष थे, जिन्हें भूस्वामी काटकर वहां दुकान बनाना चाहता था। उसने इन पेड़ों को काटने के लिए जिलाधिकारी को आवेदन कर रखा था। अपने पति द्वारा जब यह बात सुनीति यादव को पता चली तो उनके दिमाग में एक विचार कौंध गया। राखी पर्व पर कुछ महिलाओं के साथ जाकर उन्होंने उन पांच वृक्षों की विधिवत पूजा की और रक्षा सूत्र बांध दिया। देखा-देखी शाम तक आस-पास के लोगों द्वारा उन वृक्षों पर ढेर सारी राखियां बंध गई। फिर भूस्वामी को इन वृक्षों का काटने का इरादा ही छोड़ना पड़ा और गांव वाले इन पेड़ों को पांच भाई के रूप में मानने लगे। इससे उत्साहित होकर सुनीति यादव ने हर गांव में एक या दो विशिष्ट वृक्षों का चयन कराया तथा वर्ष 1993 में राखी के पर्व पर 17000 से अधिक लोगों ने 1340 वृक्षों को राखी बांधकर वनों की सुरक्षा का संकल्प लिया और इस प्रकार वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम चल निकला। बस्तर के कोंडागांव इलाके में वृक्ष रक्षा सूत्र अभियान के तहत एक वृक्ष को नौ मीटर की राखी बांधी गई।


याद कीजिए 70 के दशक का चिपको आन्दोलन। सुनीति का मानना है कि चिपको आन्दोलन वन विभाग की नीतियों के विरूद्ध चलाया गया था जबकि वृक्ष रक्षा सूत्र वन विभाग एवं जनता का सामूहिक अभियान है, जिसे समाज के हर वर्ग का समर्थन प्राप्त है। यह सुनीति यादव की प्रतिबद्वता ही है कि वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम अब देश के नौ राज्यों तक फैल चुका है। सुनीति इसे और भी व्यापक आयाम देते हुए ‘‘पौध प्रसाद कार्यक्रम‘‘ से जोड़ रही हैं। इसके लिए वे देश के सभी छोटे-बड़े धार्मिक प्रतिष्ठानों से सम्पर्क कर रही हैं कि वे भक्तों को प्रसाद के रूप में पौधे बांटे, ताकि वे उन पौधों को श्रद्धा के साथ लगायें, पालें-पोसें और बड़ा करें। यही नहीं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों, वनौषधियों के बीज पैकेट भी प्रसाद के रूप में बांटे जा रहे हैं। सुनीति यादव का मानना है कि वृक्ष भगवान के ही दूसरे रूप हैं। जब वह कहती हैं कि भगवान शिव की तरह वृक्ष सारा विषमयी कार्बन डाई आक्साइड पी जाते हैं और बदले में जीवन के लिए जरूरी आक्सीजन देते हैं, तो लोग दंग रह जाते हैं। सुनीति यादव का स्पष्ट मानना है कि-‘‘ईश्वर ने हम सभी को पृथ्वी पर किसी न किसी उद्देश्य के लिए भेजा है। आइए, उसके सपनों को साकार करें। धरती पर हरियाली को सुरक्षित रखकर हम जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाएंगे, कच्चे धागों से हरितिमा को बचाएंगे। ताज और मीनार हमारे किस काम के, जब पृथ्वी की धड़कन ही न बच सके। कल आने वाली पीढ़ी को हम क्या सौगात दे सकेंगे? आइए, रक्षाबंधन के इस पर्व पर हम भी ढेर सारे पौधे लगाएं और लगे हुए वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर उन्हें बचाएं।‘‘


आप सभी को रक्षा-बंधन पर्व पर ढेरों शुभकामनायें !!

साभार : आकांक्षा यादव : शब्द-शिखर

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

प्रशासन और साहित्य के ध्वजवाहक : कृष्ण कुमार यादव

एक समय ऐसा भी था जब सभी क्षेत्रों-वर्गों में साहित्यकारों-रचनाकारों की बड़ी संख्या होती थी। वर्तमान समाज में दूरदर्शनी संस्कृति के चलते पठन-पाठन से दूर मात्र येनकेन धनोपार्जन मुख्य उद्देश्य बन चुका है। रायबरेली के दौलतपुर ग्राम में जन्मे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी झाँसी में रेलवे विभाग में सेवारत होते हुए भी अनवरत् साहित्यिक लेखन करते रहे और अन्ततः हिन्दी साहित्य में ‘द्विवेदी युग‘ नाम से मील के पत्थर बने। साहित्य की ऐतिहासिक पत्रिका ‘सरस्वती‘ का सम्पादन उन्होंने कानपुर के जूही मोहल्ले में किया।

इसी संदर्भ में दो घटनाओं की चर्चा बिना यह बात अपूर्ण रहेगी। हिन्दी साहित्य के भीष्म पितामह तथा तमाम साहित्यकारों के निर्माता पद्मविभूषण पं0 श्री नारायण चतुर्वेदी ने लंदन में प्राचीन इतिहास से एम0ए0 किया। उनकी पहली कृति-'महात्मा टाल्सटाय' सन् 1917 में प्रकाशित हुई। इनके पिता पं0 द्वारिका प्रसाद चतुर्वेदी ने भी विदेशी शासन काल में राजकीय सेवा में रहते हुए गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्ज द्वारा भारतीयों के साथ चालाकी से किये गये योजनापूर्वक षडयन्त्र का यथार्थ चित्रण करते हुए एक ग्रंथ लिखा। नतीजन, अंग्रेजी शासन ने बौखला कर उन्हें माफी माँगने पर बाध्य किया पर ऐसे समय में उन्होंने इस्तीफा देकर अपनी देशभक्ति का प्रमाण दिया। उनके सुपुत्र जीवनपर्यन्त शिक्षा विभाग, सूचना विभाग तथा उपनिदेशक आकाशवाणी के उच्च प्रशासनिक पदों पर रहते हुए अनेकों पुस्तकों की रचना के अलावा अवकाश ग्रहण पश्चात भी लगभग चार दशकों तक विभिन्न प्रकार से हिन्दी की सेवा एवं ‘सरस्वती‘ का सम्पादन आदि सक्रिय रूप से करते रहे। उन्होंने अपने सेवाकाल में हिन्दी के अनेक शलाका-पुरूष निर्माण किये जो साहित्य की विभिन्न विधाओं के प्रकाश स्तम्भ बने। इसी प्रकार उच्चतर प्रशासनिक सेवा आई0सी0एस0 (अब परिवर्तित होकर आई0ए0एस0) उत्तीर्ण करके उत्तर प्रदेश कैडर के अन्तिम अधिकारी डा0 जे0डी0 शुक्ल प्रदेश के अनेक शीर्षस्थ पदों पर सफल प्रशासनिक अधिकारी होते हुए भी हिन्दी तथा तुलसीदास के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे। उनके ऊपर लेख, अन्त्याक्षरी तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलनों में वे सक्रिय होकर भाग लेते रहे।

हिन्दी साहित्य के प्रति दीवानगी विदेशियों में भी रही है। इटली के डा0 लुइजि पियो तैस्सीतोरी ने लोरेंस विश्वविद्यालय से सन् 1911 में सर्वप्रथम ‘तुलसी रामायण और वाल्मीकि रामायण का तुलनात्मक अध्ययन‘ पर शोध करके हिन्दी में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। वे इटली की सेना में भी सेवारत रहे। तत्पश्चात भारत में जीवनपर्यन्त रहकर इस विदेशी शंकराचार्य ने अनेक कृतियाँ लिखीं जिसमें ‘शंकराचार्य और रामानुजाचार्य का तुलसी पर प्रभाव‘ ‘वैसवाड़ी व्याकरण का तुलसी पर प्रभाव‘ प्रमुख हैं। यहाँ रहकर वह हिन्दी में बोलते और पत्र-व्यवहार भी भारत में हिन्दी में ही करते थे। डा0 तैस्सीतोरी पुरातत्व के प्रति भी लगाव होने से राजस्थान में ऊँट की सवारी करके जानकारी अर्जित करते रहे। सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि हिन्दी का यह विदेशी निष्पृह सेवक मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में ‘बीकानेर‘ में स्वर्ग सिधार गया। उसकी समाधि बीकानेर में तथा विश्व में सर्वप्रथम इनकी प्रतिमा की स्थापना ‘तुलसी उपवन‘ मोतीझील, कानपुर में करने इटली के सांस्कृतिक दूत प्रो0 फरनान्दो बरतोलनी आये। उन्होंने प्रतिमा स्थापना के समय आश्चर्यमिश्रित शब्दों में कहा कि हमारे देश में भी नहीं मालूम है कि हमारे देश का यह युवा इण्डिया की राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रथम शोधार्थी है। डा0 तैस्सीतोरी ने विश्वकवि तुलसीदास को वाल्मीकि रामायण का अनुवादक न मानते हुए सर्वप्रथम उनको स्वतन्त्र रचनाकार के रूप में सिद्ध किया।

तीस वर्षीय युवा अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव पर लिखते समय उपरोक्त घटनाक्रम स्मरण हो आये। वर्तमान प्रशासनिक अधिकारियों से तद्विषयक चर्चा करने पर वह ‘समयाभाव‘ कहते हुए साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक कार्यों के प्रति अभिरुचि नहीं रखते हैं। जिन कंधों के ऊपर राष्ट्र का नेतृत्व टिका हुआ है, यदि वे ही समयाभाव की आड़ में साहित्य-संस्कृति की अपनी सुदृढ़ परम्पराओं की उपेक्षा करने लगें तो राष्ट्र की आगामी पीढ़ियाँ भला उनसे क्या सबक लेंगीं? पर सौभाग्यवश अभी भी प्रशासनिक व्यवस्था में कुछ ऐसे अधिकारी हैं जो अपनी प्रशासनिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक जिम्मेदारियों को भी बखूबी समझते हैं और इसे अपने दायित्वों का ही एक अंग मानकर क्रियाशील हैं।


ऐसे अधिकारियों के लिए पद की जिम्मेदारियां सिर्फ कुर्सी से नहीं जुड़ी हुई हैं बल्कि वे इसे व्यापक आयामों, मानवीय संवेदनाओं और अनुभूतियों के साथ जोड़कर देखते हैं। भारतीय डाक सेवा के अधिकारी श्री कृष्ण कुमार यादव ऐसे ही अधिकारियों में से हैं। प्रशासन में बैठकर भी आम आदमी के मर्म और उसके जीवन की जद्दोजहद को जिस गहराई से श्री यादव छूते हैं, वह उन्हें अन्य अधिकारियों से अलग करती है। जीवन तो सभी लोग जीते हैं, पर सार्थक जीवन कम ही लोग जीते हैं। नई स्फूर्ति, नई ऊर्जा, नई शक्ति से आच्छादित श्री यादव प्रख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की इस उक्ति के सार्थक उदाहरण हैं कि-‘‘सिर्फ सफल होने की कोशिश न करें, बल्कि मूल्य-आधारित जीवन जीने वाला मनुष्य बनने की कोशिश कीजिए।‘‘ आपके सम्बन्ध में काव्य-मर्मज्ञ एवं पद्मभूषण श्री गोपाल दास ‘नीरज‘ जी के शब्द गौर करने लायक हैं- ‘‘कृष्ण कुमार यादव यद्यपि एक उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारी हैं, किन्तु फिर भी उनके भीतर जो एक सहज कवि है वह उन्हें एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत करने के लिए निरन्तर बेचैन रहता है। उनमें बुद्धि और हृदय का एक अपूर्व सन्तुलन है। वो व्यक्तिनिष्ठ नहीं समाजनिष्ठ साहित्यकार हैं जो वर्तमान परिवेश की विद्रूपताओं, विसंगतियों, षडयन्त्रों और पाखण्डों का बड़ी मार्मिकता के साथ उद्घाटन करते हैं।’’

प्रशासन के साथ साहित्य में अभिरुचि रखने वाले श्री कृष्ण कुमार युवा पीढ़ी के अत्यन्त सक्रिय रचनाकार हैं। पदीय दायित्वों का निर्वाहन करते हुए और लोगों से नियमित सम्पर्क-संवाद स्थापित करते हुए जो बिंब उनके मन-मस्तिष्क पर बनते हैं, उनकी कलात्मक अभिव्यंजना उनकी साहित्यिक रचनाओं में स्पष्ट देखी जा सकती है। इन विलक्षण रचनाओं के गढ़ने में उनकी संवेदनशीलता, सतत् काव्य-साधना, गहन अध्ययन, चिंतन-अवचिंतन, अवलोकन, अनुभूतियों आदि की महत्वपूर्ण भूमिका है। बकौल प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित- ’’कृष्ण कुमार यादव न किसी वैचारिक आग्रह से प्रतिबद्ध हैं और न किसी कलात्मक फैशन से ग्रस्त हैं। उनका आग्रह है- सहज स्वाभाविक जीवन के प्रति और रचनाओं में उसी के यथावत अकृत्रिम उद्घाटन के प्रति।’’ यही कारण है कि मुख्यधारा के साथ-साथ बाल साहित्य से भी रचनात्मक जुड़ाव रखने वाले श्री यादव की अल्प समय में ही दो निबन्ध संग्रह ’’अभिव्यक्तियों के बहाने’’ व ’’अनुभूतियाँ और विमर्श’’, एक काव्य संग्रह ’’अभिलाषा’’, 1857-1947 की क्रान्ति गाथा को सहेजती ’’क्रान्ति-यज्ञ’’ एवं भारतीय डाक के इतिहास को कालानुक्रम में समेटती ’’इण्डिया पोस्ट: 150 ग्लोरियस ईयर्स’’ सहित कुल पाँच पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। अपने व्यस्ततम शासकीय कार्यों में साहित्य या रचना-सृजन को बाधक नहीं मानने वाले श्री यादव की रचनाएँ देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और सूचना-संजाल के इस दौर में तमाम अन्तर्जाल पत्रिकाओं- सृजनगाथा, अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, रचनाकार, हिन्दी नेस्ट इत्यादि में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं। श्री यादव स्वयं अंतर्जाल पर 'शब्द सृजन की ओर' और 'डाकिया डाक लाया' नामक ब्लॉगों का सञ्चालन भी करते हैं. आकाशवाणी लखनऊ, कानपुर और पोर्टब्लेयर से कविताओं, वार्ता, परिचर्चा इत्यादि के प्रसारण के साथ-साथ 50 से अधिक प्रतिष्ठित संकलनों में विभिन्न विधाओं में उनकी सशक्त रचनाधर्मिता के दर्शन होते हैं। प्रशासन के साथ-साथ उनकी विलक्षण रचनाधर्मिता के मद्देनजर कानपुर से प्रकाशित ’’बाल साहित्य समीक्षा’’ (स0 : डा0 राष्ट्रबंधु) एवं इलाहाबाद से प्रकाशित ’’गुफ्तगू'' पत्रिकाओं ने उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक जारी किये हैं। यही नहीं उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती और एक साहित्यिक व्यक्तित्व के रूप में उनके योगदान को परिलक्षित करती , दुर्गाचरण मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ’’बढ़ते चरण शिखर की ओर: कृष्ण कुमार यादव’’ भी प्रकाशित हो चुकी है.

निश्चिततः ऐसे में उनकी रचनाधर्मिता ऐतिहासिक महत्व की अधिकारी है। प्रशासनिक पद पर रहने के कारण वे जीवन के यथार्थ को बहुत बारीकी से महसूस करते हैं। उनकी कविताओं में प्रकृति चित्रण और जीवन के श्रृंगार के साथ-साथ राष्ट्रीय चेतना और सामाजिक सरोकारों से भरपूर जीवन का यथार्थ और भी मन को गुदगुदाता है। प्रसिद्ध साहित्यकार डा0 रामदरश मिश्र लिखते हैं कि- ’’कृष्ण कुमार की कविताएं सहज हैं, पारदर्शी हैं, अपने समय के सवालों और विसंगतियों से रूबरू हैं। इनकी संवेदनशीलता अपने भीतर से एक मूल्यवादी स्वर उभारती है।’’ वस्तुतः एक प्रतिभासम्पन्न, उदीयमान् नवयुवक रचनाकार में भावों की जो मादकता, मोहकता, आशा और महत्वाकांक्षा की जो उत्तेजना एवं कल्पना की जो आकाशव्यापी उड़ान होती है, उससे कृष्ण कुमार जी का व्यक्तित्व-कृतित्व ओत-प्रोत है। ‘क्लब कल्चर‘ एवं अपसंस्कृति के इस दौर में एक युवा प्रशासनिक अधिकारी की हिन्दी-साहित्य के प्रति ऐसी अटूट निष्ठा व समर्पण शुभ एवं स्वागत योग्य है। ऐसा अनुभव होता है कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन के जनपद आज़मगढ़ की माटी का प्रभाव श्री यादव पर पड़ा है।

श्री कृष्ण कुमार यादव अपनी कर्तव्यनिष्ठा में ऊपर से जितने कठोर दिखाई पड़ते हैं, वह अन्तर्मन से उतने ही कवि-हृदय के कोमल व्यक्तित्व वाले हैं। स्पष्ट सोच, पारखी दृष्टिकोण एवम् दृढ़ इच्छाशक्ति से भरपूर श्री यादव जी की जीवन संगिनी श्रीमती आकांक्षा यादव भी संस्कृत विषय की प्रखर प्रवक्ता एवं विदुषी कवयित्री व लेखिका हैं, सो सोने में सुहागा की लोकोक्ति स्वतः साकार हो उठती है। सुविख्यात समालोचक श्री सेवक वात्स्यायन इस साहित्यकार दम्पत्ति को पारस्परिक सम्पूर्णता की उदाहृति प्रस्तुत करने वाला मानते हुए लिखते हैं - ’’जैसे पंडितराज जगन्नाथ की जीवन-संगिनी अवन्ति-सुन्दरी के बारे में कहा जाता है कि वह पंडितराज से अधिक योग्यता रखने वाली थीं, उसी प्रकार श्रीमती आकांक्षा और श्री कृष्ण कुमार यादव का युग्म ऐसा है जिसमें अपने-अपने व्यक्तित्व एवं कृतित्व के कारण यह कहना कठिन होगा कि इन दोनों में कौन दूसरा एक से अधिक अग्रणी है।’’

श्री यादव की कृतियों पर समीक्षक ही अपने विचार व्यक्त करने की क्षमता रखते हैं पर इतने कम समय में उन्होंने साहित्यिक एवं प्रशासनिक रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाई है, जो विरले ही देखने को मिलती हैं। प्रतिभा उम्र की मोहताज नहीं होती, अस्तु प्रशासकीय व्यस्तताओं के मध्य विराम समय में उनकी सरस्वती की लेखनी सतत् चलती रहती है। यही नहीं, वह दूसरों को भी उत्साहित करने में सक्रिय योगदान देते रहते हैं। उनकी पुस्तक ’’अनुभूतियाँ और विमर्श’’ के कानपुर में विमोचन के दौरान पद्मश्री गिरिराज किशोर जी के शब्द याद आते हैं- ’’आज जब हर लेखक पुस्तक के माध्यम से सिर्फ आपने बारे में बताना चाहता है, ऐसे में कृष्ण कुमार जी की पुस्तक में तमाम साहित्यकारों व मनीषियों के बारे में पढ़कर सुकून मिलता है और इस प्रकार युवा पीढ़ी को भी इनसे जोड़ने का प्रयास किया गया है।’’ मुझे ऐसा अनुभव होता है कि ऐसे लगनशील व कर्मठ व्यक्तित्व वाले श्री कृष्ण कुमार यादव पर साहित्य मनीषी कविवर डा0 अम्बा प्रसाद ‘सुमन’ की पंक्तियाँ उनके कृतित्व की सार्थकता को उजागर करती हैं-चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है/कल्पना कर्म से सदा नीचे होती है/प्रेम जिहृI में नहीं नेत्रों में है/नेत्रों की वाणी की व्याख्या कठिन है/मौन रूप प्रेम की परिभाषा कठिन है /चरित्र करने में है कहने में नहीं/चरित्र की ध्वनि शब्द से ऊँची होती है।

डा0 बद्री नारायण तिवारी, संयोजक- राष्ट्रभाषा प्रचार समिति-वर्धा, उत्तर प्रदेश
पूर्व अध्यक्ष-उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन, संयोजक-मानस संगम
38/24, शिवाला, कानपुर (उ0प्र0)-208001

(कृष्ण कुमार यादव के जन्मदिवस,10 अगस्त पर श्री बद्री नारायण तिवारी जी का यह लेख साभार प्रकाशित. चित्र में कृष्ण कुमार और तिवारी जी साथ दिख रहे हैं. )