रविवार, 3 मई 2009

लोक साहित्य को समर्पित: अमृतायन

लोक साहित्य को समर्पित त्रैमासिक पत्रिका ‘अमृतायन‘ का प्रवेशांक मार्च-मई 2009 अंक रूप में प्रकाशित हुआ है। पहले यह पत्रिका ‘लोकायन‘ नाम से प्रकाशित हुई थी पर कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण अब यह ‘अमृतायन‘ नाम से प्रकाशित होगी। आज हिन्दी के समानांतर ही अवधि, ब्रज, भोजपुरी जैसी तमाम बोलियां भी लिखित रूप में साहित्य में प्रश्रय पा रही हैं। लोक साहित्य की रचनाधर्मिता और उमंग को इन बोलियों से निकाल कर लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने का कार्य ‘अमृतायन‘ द्वारा किया जा रहा है। लोक साहित्य और संस्कृति से जुड़े तमाम आयाम इस पत्रिका की शोभा बढ़ा रहे हैं। कुमाऊंनी भाषा के परिचय से लेकर लोकपर्व - टेसू विवाह पर प्रस्तुत आलेख महत्वपूर्ण है। कजरी पर कृष्ण कुमार यादव का प्रस्तुत लेख लोक रंगत की धाराओं के माध्यम से लोक जीवन में तेजी से मिटते मूल्यों को बचाने की भी बात करता है। अवधि के लोग कवि घाघ पर प्रकाशित लेख सारगर्भित है। आकांक्षा यादव ने ‘लोक चेतना में स्वाधीनता की लय‘ को खूबसूरत शब्दों में पिरोया है। तमाम लोकोक्तियों, कविताओं एवं लेखों से सुशोभित ‘अमृतायन‘ को हिन्दी के विद्वान प्रो0 सूर्य प्रसाद दीक्षित का संरक्षण और भी महत्वपूर्ण बनाता है।
संपर्क-डा0 अशोक ‘अज्ञानी‘, हिन्दी अनुभाग, राजकीय हुसैनाबाद इंटर कालेज, चौक, लखनऊ-226003

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