क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाले जो नेता उत्तर भारतीयों और मराठियों को अलग-अलग चश्में से देखते हैं, उनके लिए यह आँखें खोलने वाली घटना हो सकती है। २६ नवम्बर २००८ को जब मुंबई के सीएसटी रेलवे स्टेशन पर आतंकियों ने खूनी खेल शुरू किया, तब जिल्लू यादव वहीं तैनात थे। बनारस के मूल निवासी जिल्लू आरपीएफ में हेड कांस्टेबल हैं। उनके हाथ में सिर्फ एक डंडा था। आतंकी एके 47 रायफल से अंधाधुध गोलियाँ बरसा रहे थे। टिकट काउंटर के अहाते के पास खड़े जिल्लू यादव यह दृश्य देख एक बार तो दहल उठे। लेकिन जल्दी ही संभल भी गए। जिल्लू यादव उस पल को याद करते हुए कहते हैं- डर तो मुझे भी लग रहा था, लेकिन तुरंत मन ने कहा कि यदि इन आतंकियों को रोका नहीं गया तो बहुत से लोगों को मार डालेंगे। लेकिन जिल्लू यादव करते भी तो क्या। आरपीएफ के पास हथियार की कमी के कारण इस बहादुर सिपाही के हाथ में सिर्फ एक डंडा था। गलियारे के दूसरे छोर पर खड़े जीआरपी के एक सिपाही के हाथ में 303 राइफल तो थी, लेकिन डर के मारे उसके हाथ पैर फूल गए थे। जिल्लू यादव ने चिल्ला कर उससे गोली चलाने को कहा, लेकिन निशाना साधने के बजाय वह छुपने का रास्ता खोजने लगा। तब जिल्लू यादव से नहीं रहा गया। वह जान जोखिम में डाल कर करीब 10 फुट चैड़ा गलियारा पार कर खुद उस सिपाही के पास जा पहुँचे और उसके हाथ से बंदूक झपट कर एक आतंकी पर निशाना साधकर दनादन दो फायर झोंक दिये। बंदूक की गोलियाँ समाप्त हो चुकी थी। जबकि आतंकी फायरिंग का रूख उनकी ओर कर चुके थे। जिल्लू ने पहले तो इधर-उधर दूसरी बंदूक या कारतूस के लिए ताकझांक की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा तो सीधे वहाँ रखी एक कुर्सी उठाकर अपनी ओर बढ़ रहे एक आतंकी पर दे मारी। उनके दिमाग में तो बस यही था कि वह जिनकी जान की फिक्र कर रहे हैं, वे सब इंसान है। इस बीच जिल्लू की हिम्मत देख स्टेशन पर तैनात जीआरपी व आरपीएफ के अन्य जवानों में भी जोश आ गया और दोतरफा गोलियाँ चलने लगीं। आरपीएफ इंस्पेक्टर खिरतकर और सब इंस्पेक्टर भोंसले ने एक ओर से तो जीआरपी के दो जवानों ने दूसरे छोर से मोर्चा संभाल लिया था। जिल्लू यादव की इस बहादुरी के लिए उन्हें रेलवे विभाग की तरफ से 10 लाख रूपए का इनाम देने की घोषणा हुई है। इस पर उनकी प्रतिक्रया पूछने पर जिल्लू यादव सीधा सा जवाब देते हैं- ‘‘उस वक्त मैंने जो किया वह वक्त की जरूरत थी।‘‘ 52 वर्षीय जिल्लू यादव उत्तर प्रदेश के बनारस जिले में हरहुआं ब्लाक स्थित गोसाईं पर मोहाब गाँव के मूल निवासी हैं। जिल्लू यादव की इस बहादुरी को ‘यदुकुल‘ सलाम करता है।
Mahila Samman Savings Certificate : Varanasi Region at top in Uttar
Pradesh, 21,000 women invested more than Rs. 1 billion
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Post Office Savings schemes are very popular among public. People have
been investing in these from generation to generation. Postmaster General
of Vara...
15 घंटे पहले
10 टिप्पणियां:
अपने बनारसी बाबू तो कमाल के निकले...उनका अभिनन्दन है.
ऐसे युवा ही इतिहास रचते हैं.
डाकिया बाबू की तरफ से ऐसे वीरों को salute.
क्षेत्रवाद की राजनीति करने वाले जो नेता उत्तर भारतीयों और मराठियों को अलग-अलग चश्में से देखते हैं, उनके लिए यह आँखें खोलने वाली घटना हो सकती है...चलिए इसी बहाने राज ठाकरे की नौटंकी तो ख़त्म हुयी.
जिल्लू ने पहले तो इधर-उधर दूसरी बंदूक या कारतूस के लिए ताकझांक की, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा तो सीधे वहाँ रखी एक कुर्सी उठाकर अपनी ओर बढ़ रहे एक आतंकी पर दे मारी। उनके दिमाग में तो बस यही था कि वह जिनकी जान की फिक्र कर रहे हैं, वे सब इंसान है....Great man.
इस बहादुरी को नमन.
उनके हाथ में सिर्फ एक डंडा था। आतंकी एके 47 रायफल से अंधाधुध गोलियाँ बरसा रहे थे। Really brave man.
उनके दिमाग में तो बस यही था कि वह जिनकी जान की फिक्र कर रहे हैं, वे सब इंसान है।...is jajbe ko salam.
वर्तमान के तथाकथित कर्णधारों की आवाज में दम नहीं है क्योंकि आवाज में दम, संस्कार, विचार और चरित्र से आता है पर ये कर्णधार अन्दर से खोखले हैं। इसे राष्ट्र की बदकिस्मती ही कहा जायेगा कि इन नेताओं की कोई नीति नहीं है, नैतिकता नहीं है, चरित्र की पवित्रता नहीं है, समग्रता नहीं है, समदर्शिता नहीं है।
बहुत सटीक टिपण्णी की है आपने आज के हालात पर..काश देश का कोई नेता इसे पढ़े और समझे...बहुत ही सार्थक पोस्ट है आपकी...साधुवाद...
नीरज
सब नेता चोर, मीडिया वाले तो पूरे व्यवसायी, नागरिकों की पूछिए मत अपना विवेक इस्तेमाल करने का समय ही कहाँ है इनके पास. युवा पीढी भटकाव पर है। ऐसी में भला विचार मंथन का समय किस के पास है? आपका लेख शायद जो पढ़ेंगे वो ज़रूर सोचने पर विवश होंगे कि अब जागने का वकत आ गया है? आपको मेरा प्रणाम।
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